पैग़ंबर हज़रत मोहम्मद के नाती और इस्लाम के चौथे ख़लीफ़ा हज़रत अली के बेटे हज़रत इमाम हुसैन की शहादत की याद में ताज़िया निकाला जाता है और शोक मनाया जाता है. इमाम हुसैन को यज़ीद की फ़ौज ने करबला (इराक़ में स्थित) के मैदान में 10वीं मुहर्रम को शहीद कर दिया था.उसके बाद से इमाम हुसैन को सच्चाई के रास्ते में क़ुर्बानी का प्रतीक मान लिया गया जिन्होंने सच्चाई के लिए अपने साथ साथ सारे घर की क़ुर्बानी दे दी. उनकी शहादत पर जितना मातम हुआ है और जितने आंसू बहाए गए हैं उतने आंसू किसी एक व्यक्ति के लिए कभी नहीं बहाए गए.
बिहार और उत्तर प्रदेश में कई स्थानों पर हिंदू ताज़िए के प्रति अपना सम्मान प्रकट करते हैं. बिहार के सिवान ज़िले के हसनपुरा गाँव के नानकशाही मठ से पिछले तीन सौ वर्षों से ताज़िया जुलूस निकाला जाता है. महंत रामदास ने इस बार अपने मठ से पूरी श्रद्धा के साथ ताज़िए को कंधा दिया. वे ख़ुद को हुसैनी महंत कहते हैं. बिहार के सिवान ज़िले के हसनपुरा गाँव के नानकशाही मठ से पिछले तीन सौ वर्षों से ताज़िया जुलूस निकाला जाता है. महंत रामदास ने इस बार अपने मठ से पूरी श्रद्धा के साथ ताज़िए को कंधा दिया. वे ख़ुद को हुसैनी महंत कहते हैं
लखनऊ के बड़े इमामबाड़े का लाटू साक़िन का ताज़िया, हुसैन टेकरी का ताज़िया, रोहड़ी का चार सौ साल पुराना ताज़िया, 52 डंडों का ताज़िया, चालीस मिम्बरों की ज़ियारत और पाकिस्तान के मुल्तान शहर में उस्ताद और शागिर्द के पौने दो सौ साल पुराने ताज़िए दुनिया भर में मशहूर हैं. ताज़िए के साथ मातम मनाने के लिए जलूस निकलते हैं और हर जलूस का अपना एक अलम यानी झंडा होता है, एक ही शहर में सैकड़ों की संख्या में ताज़िए निकाले जाते हैं. और एक निश्चित स्थान जिसे करबला कहा जाता है वहाँ पर लोग अपने गाजे-बाजे के साथ हथियार चलाने के हुनर दिखाते हैं.
हमारे कुछ ब्लोगेर भाईओं ने भी ताज़ी का ज़िक्र अपने तरीके से किया है..
हमें याद है जब बगल के गाँव में लगने वाले ताजिया के मेले के दिन [मोहर्रम की दसवीं तारीख (योमे आशुरा) ] हम दोपहर से ही तैयार होकर घर के बड़े-बुजुर्गों से ‘मेला करने’ के लिए चन्दा इकठ्ठा करते थे। गाँव के बीच से गुजरने वाली सड़क से होकर मेले की ओर जाने वाली ताजियों की कतार व उन्हें ढोने वालों व साथ चलने वालों के कंठ से हासन-हुसैन की जै-जयकार के नारों के बीच ढोल नगाड़े की कर्णभेदी ध्वनियों के साथ उड़ती हुई धूल को दरकिनार कर उनके बीच में तमाशाई बन पहुँच जाते थे।
यहां हजरत इमाम हुसैन की याद में मुहर्रम का जुलूस सौहार्दपूर्ण माहौल में निकाला गया। जुलूस में शामिल लोग हजरत इमाम हुसैन को याद कर रहे थे1 मुहर्रम के ताजिये को आखिर में कर्बला ले जाया गया कस्बे में गुरूवार सुबह से ही ढ़ोल-ताशे गुंजने लग गए थे। मस्जिद से रवाना हुए ताजिए को कचहरी के पास मुकाम कराया गया और यहां से पुन: मस्जिद के सामने से गुजरते हुए मीरा बाई चबूतरे मुकाम कराया गया। इसके बाद ऊपरला बाजार,कुम्हारों का चौड़ा और पुन: लौट कर पठानों का मौहल्ला व अस्पताल मुकाम किया गया। आखिरी बड़ा मुकाम राठेलाव चौराहा पर किया गया। इन मुकामों पर युवकों ने खुद को लहूलुहान कर हैरतअगेंज करतब दिखाए। शाम ढ़ले ताजिया जूलुस मस्जिद लौट आया और करबला में ठंडा करने की रस्म की। ग्राम पंचायत के सामने मुकाम के दौरान ग्राम पंचायत की ओर से उपसरपंच टेकाराम प्रजापत ने ताजिए सहित मुस्लिम समुदाय के सदर मिसरू खां पठान,नगर सदर अली हूसैन शेख,मोहर्रम के लाइसेंसदार फकीर मोहम्मद व सुलतान खां का इस्तकबाल किया। इस दौरान प्रधान श्रीमती सुशीला गौड़,थानाधिकारी गोपसिंह देवड़ा,ए.एस.आई.बन्नेसिंह,चिकित्सा अधिकारी डॉ.राजेश राठौड़,वाडऱ् पंच आबिद मोहम्मद,शंकरलाल सरगरा,बाबूलाल सांवलेचा सहित कई लोग मौजूद थे।
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