अमन का पैग़ाम .....: हे राम मुझे बचाओ इन नफरत के और इंसानियत के सौदागरों से
जानवर बिचारा सच मैं बेज़बान है, यह ज़बान वाला इंसान , अब बकरे को भी अपनी जबान देके, उसका इस्तेमाल करके अपना उल्लू सीधा करने लगा.
कुछ दिन पहले मैंने यह लेख़ लिखा था और हर लेख़ की तरह इस लेख़ का भी मकसद एक ही था. नफरत फैलाने वालों को कैसे पहचाना जाए. इधेर बकरे की आड़ मैं आम इंसानों के दिलों मैं मुस्लिम समाज के लिए नफरत पैदा करने की नाकाम कोशिश की जा रही हैं.
दो अलग अलग धर्मों को मानने वाले इंसानों के बीच नफरत पैदा करना , एक जघन्य अपराध है और हकीकत मैं यह ऐसे लोग इंसानियत के अपराधी हैं.
इन लोगों को बकरे से क्या हकीकत मैं हमदर्दी है? क्या यह सच मैं शाकाहारी लोग है? यदी हाँ तो मैं इनकी कद्र करता हूँ. और यदि नहीं तो यह लोग बकरे की आड़ मैं क्या कर रहे हैं?
सीधी सी बात है यदि यह लोग आप को किसी भी जानवर के मांस खाने के खिलाफ बोलते दिखें तो यह सत्य के साथ हैं और यह इनका हक है की यदि यह मांसाहारी हैं तो सको उसके बारे मैं बताएं.
लेकिन अधिकतर लोग जो आज कल बकरे की आड़ मैं नफरत की सौदागरी कर रहे हैं, मौक़ा पड़ने पे खूब मांस उड़ाते हैं. और कुछ ब्लॉग पे तो खुले आम कह दिया गया स्वाद के लिए खाओ, चलेगा, झटका (जहाँ एक बार मैं गर्दन उडा दी जाती है) कर के खाओ चलेगा, लेकिन हलाल कर के खाना ज़ुल्म है, अल्लाह के बताए तरीके से ज़ेबा करना ज़ुल्म है.
बात खुली है यह लोग मुस्लिम के खिलाफ लोगों को भड़का रहे हैं और इसके लिए बेजुबान बकरे का इस्तेमाल हो रहा है. मेरा इस लेख़ के पीछे एक ही मकसद है की' जो लोग यह कर रहे हैं, वोह जानते हैं क्या कर रहे हैं और क्यों और उनको करने दो यह काम क्योंकि यही उनकी रोज़ी रोटी है.
लेकिन जो लोग इनके फरेब मैं आ रहे हैं, उनको चाहिए की हक को पहचाने.
अभी दो चार दिन से एक कहानी बकरे की आत्म कथा :गोपीनाथ अग्रवाल जी द्वारा लिखित कह के लोगों तक पहुंचा के यह साबित करने की नाकाम कोशिश की जा रही है की मनुष्य को नर्म दिल होना चाइये ज़ालिम नहीं की एक बेजुबान बकरे को काट के ज़ुल्म के रहा है.
वोह आत्म कथा सच मैं जिस किसी ने लिखी है एक बेहतरीन और बहुत ही मार्मिक रचना है , "लेकिन लेखक लिखते लिखते एक बात लिख गया, जिस से उसका मकसद सामने आ गया : "किन्तु नहीं, मुझे अभी और कष्ट उठाने थे और तडपना था क्योंकि सिर्फ आधी गर्दन कटी होने से मेरी मौत में विलम्ब हो रहा था"
इस कहानी को देख ऐसा लगता है बकरे के सर मैं इंसान का दिमाग रख दिया गया और नतीजे मैं यह कहानी सामने आयी. कहानी यकीनन बहुत दर्दनाक है. लेकिन इस कहानी लिखने वाले ने सभी बकरों की कहानी नहीं लिखी. ऐसा क्यों यह सवाल किसी के भी दिमाग मैं उठना आवश्यक है ?
जानवर बिचारा सच मैं बेज़बान है, यह ज़बान वाला इंसान , अब बकरे को भी अपनी जबान देके, उसका इस्तेमाल करके अपना उल्लू सीधा करने लगा.
ऐसे लोग हमेशा आप के जज़्बात से खेल के दो अलग अलग धर्मो के लोगों के दिलों मैं एक दूसरे के लिए नफरत पैदा करते हैं यह इंसानियत के दुश्मन हैं. और ऐसे लोग सभी धर्मो मैं हैं, क्योंकि ऐसे लोगों का कोई धर्म असल मैं होता ही नहीं.
इनके बहकावे मैं ना आएं और इंसानियत के मुजरिम ना बनें.
मज़हब नहीं सीखाता आपस मैं बैर रखना. बचपन से सुना था. सवाल यह है तब कौन है जो सीखा रहा है आपस मैं बैर रखना? वो जो भी हो उसको मुहब्बत का पैग़ाम दो और समाज मैं अमन और शांति काएम करें
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