धार्मिक ट्रस्टों ,मंदिरों और मस्जिदों के खाते मैं बेशुमार दौलत का होना एक आम सी बात है. अभी आज कल की खबरें हैं की त्रिवेन्द्रम (थिरूअनंतपुरम) के पद्मनाभास्वामी मंदिर में अभी तक एक लाख करोड़ का खजाना मिल गया है जबकि एक सबसे बड़ा, सुरक्षित व महत्वपूर्ण कक्ष अभी खोला जाना बाकी है. इसी प्रकार सत्य साईं के कमरे मैं लाखों के जवाहरात का मिलना भी अभी कल की ही बात है.
सवाल यह उठता है की यह धन कौन देता है? किसको देता है? और क्यों देता है?
कौन देता है यह धन इसका जवाब तो आसान है की श्रद्धालु अपने मन्नत पूरी होने पे और कभी कभी खुद की ख़ुशी से धार्मिक कार्यों को आगे बढ़ाने के लिए यह धन देते हैं.
सबसे बड़ा सवाल यह है की क्या यह धन भगवान्, अल्लाह के काम आता है? यकीनना नहीं आता क्यों की यह अधिकतर तिजोरियों और बैंक के खतों मैं बंद पड़ा रहता है या फिर मुल्ला और पंडो का पेट भरता है.
मैं और धर्मों के बारे मैं टिप्पणी करने से हमेशा बचता हूं लेकिन इस्लाम मैं कहा जाता है की यदि कोई धन अल्लाह को देना हो तो उसे किसी ग़रीब को, ज़रुरत मंद को दो . क्योंकि तुम्हारे और गरीब के हाथ के बीच मैं अल्लाह होता है.इसका मतलब यह हुआ की यदि गरीब की मदद की जाए धन से तो यह धन अल्लाह के पास जाता है.
इसलिए इस्लाम मैं जब भी कोई इंसान धर्म के नाम पे पैसा देता है तो उसका दो ही मकसद होता है.
१) गरीब और ज़रुरत मंदों की मदद करना. वो चाहे मुफ्त चिक्तिसा सुविधा दे के की जाए, बेटी की शादी करवा के की जाए,रोटी औ कपडा और मकान का इंतज़ाम कर के की जाए या मुफ्त शिक्षा सुविधा दे की जाए.
२) और धार्मिक स्थलों की देख रख करना और धार्मिक उपदेशों को दुनिया तक पहुँचाना .
शायद मंदिरों मैं धन देने वालों का भी मकसद यही हुआ करता है. श्रधालुओं का मकसद यदि अल्लाह की, भगवान् की ख़ुशी है तो उनको अपना धन खुद से गरीब तलाश कर उसकी मदद जैसे बन पड़े करनी चाहिए और मंदिरों और मस्जिदों को केवल उतना ही धन दिया जाए जितनी उनके रख रखाव के लिए आवश्यक है.
लेख लिखते समय ऐसे ही ध्यान आया की अन्ना हजारे ने भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाई तो जनता का सहयोग मिला, बाबा रामदेव ने काला धन हिन्दुस्तान वापस लाने के लिए आवाज़ उठाई तो भी जनता ने कम या अधिक साथ दिया.
अब यदि कोई इन मंदिर और मस्जिद के धन को समाज सेवा मैं लगाने के लिए आवाज़ उठाए और धरने पे बैठ जाए तो क्या तब भी जनता साथ देगी?
यह सवाल इस लिए मन मैं उठा क्यों की यह धन धर्म के नाम पे देने वाली जनता ही तो है.
सवाल यह उठता है की यह धन कौन देता है? किसको देता है? और क्यों देता है?
कौन देता है यह धन इसका जवाब तो आसान है की श्रद्धालु अपने मन्नत पूरी होने पे और कभी कभी खुद की ख़ुशी से धार्मिक कार्यों को आगे बढ़ाने के लिए यह धन देते हैं.
सबसे बड़ा सवाल यह है की क्या यह धन भगवान्, अल्लाह के काम आता है? यकीनना नहीं आता क्यों की यह अधिकतर तिजोरियों और बैंक के खतों मैं बंद पड़ा रहता है या फिर मुल्ला और पंडो का पेट भरता है.
मैं और धर्मों के बारे मैं टिप्पणी करने से हमेशा बचता हूं लेकिन इस्लाम मैं कहा जाता है की यदि कोई धन अल्लाह को देना हो तो उसे किसी ग़रीब को, ज़रुरत मंद को दो . क्योंकि तुम्हारे और गरीब के हाथ के बीच मैं अल्लाह होता है.इसका मतलब यह हुआ की यदि गरीब की मदद की जाए धन से तो यह धन अल्लाह के पास जाता है.
इसलिए इस्लाम मैं जब भी कोई इंसान धर्म के नाम पे पैसा देता है तो उसका दो ही मकसद होता है.
१) गरीब और ज़रुरत मंदों की मदद करना. वो चाहे मुफ्त चिक्तिसा सुविधा दे के की जाए, बेटी की शादी करवा के की जाए,रोटी औ कपडा और मकान का इंतज़ाम कर के की जाए या मुफ्त शिक्षा सुविधा दे की जाए.
२) और धार्मिक स्थलों की देख रख करना और धार्मिक उपदेशों को दुनिया तक पहुँचाना .
शायद मंदिरों मैं धन देने वालों का भी मकसद यही हुआ करता है. श्रधालुओं का मकसद यदि अल्लाह की, भगवान् की ख़ुशी है तो उनको अपना धन खुद से गरीब तलाश कर उसकी मदद जैसे बन पड़े करनी चाहिए और मंदिरों और मस्जिदों को केवल उतना ही धन दिया जाए जितनी उनके रख रखाव के लिए आवश्यक है.
लेख लिखते समय ऐसे ही ध्यान आया की अन्ना हजारे ने भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाई तो जनता का सहयोग मिला, बाबा रामदेव ने काला धन हिन्दुस्तान वापस लाने के लिए आवाज़ उठाई तो भी जनता ने कम या अधिक साथ दिया.
अब यदि कोई इन मंदिर और मस्जिद के धन को समाज सेवा मैं लगाने के लिए आवाज़ उठाए और धरने पे बैठ जाए तो क्या तब भी जनता साथ देगी?
यह सवाल इस लिए मन मैं उठा क्यों की यह धन धर्म के नाम पे देने वाली जनता ही तो है.
17 comments:
आपकी पोस्ट पढ़ी है. भारत में जनता के धन को धर्म के नाम पर लूटा गया है. इस धन का बहुत ही कम हिस्सा जन की भलाई के लिए लौटता है. इसके खिलाफ़ कोई आवाज़ उठाएगा तो कोई सधा हुआ राजनीतिज्ञ ही उठा सकता है जो शक्तिशाली भी हो. इन अकूत धन वालों के साथ लड़ना इतना आसान नहीं है. हाँ सुप्रीम कोर्ट अगर इमानदारी से निदेश दे तो कुछ हो सकता है....और फिर उसका पालन इमानदारी से करने वाले भी होने चाहिएँ. यह मामला उठा है यह बहुत बड़ी बात है. मेरी राय है कि ऐसे ख़ज़ानों को सरकार जब्त करे. इस पैसे का उपयोग गरीबों के विकास पर ही होना चाहिए जिनका पैसा धर्म आ अन्य ऐसे तरीकों से चूस कर इन धार्मिक तिजोरियों में भरा जाता है.
This show the prosperity of Indian Civilized, How we kept our traditions, money, ornaments & values for our generation.
This whole accord will be expertise in the further of humanization, school trust n orphans help.
We can't know the things of god, man can be a value insect in the earth among all creatures.......
aapki post padker accha laga ki aapne is samay ke sabse jwalant mudde pe likha......(waise aap hamesha hi sam samayik mude pe likhte hai)bahas ke liye ek accha manch taiyar kiya hai.....
hamare desh me yehi to vidambna hai ki log dherm ke bare me badi badi baat to kerte hai pr jab kerne ke liye samayaata hai to bus chadhava ke rup me yogdaan deker baith jate hai.......wo ye bhi nahi sochte ki kaise aur kaun iska upyog ya durpyog karega............kassh jaldi hi koi aisi vyavastha lagu ki jaye kisi bhi dharmik sthal me kisi bhi tareh ke daan ya chadave ka hisab kitab rakha jaye aur salan uska aaklan ker garibo ya jaruratmando ke liye kuch samaj ke liye karya kiye jaye............
मुद्दा तो सही उठाया है...वैसे भी यह धन तिजोरियों में पड़ा क्या करेगा...इसे गरीबों की मदद में लगाया जाना चाहिए...और कारगर योजनाएं शुरू की जानी चाहिए....
mere vichaar mein ye dhan Supreem Court ki nigraani mein padhe rahne dena chaahoye jab tak ki bhrasht raajniti khatm nahi hoti ... jab tak 100 mein se 100 pase sahi kaam mein mnahi lagaaye jaate ... kam se kam abhi ye paisa surakshit ho hai ... nahi to ye neta samaajik kaam ki aad mein khaa jaayenge ...
jaha tak videshon mein jama dhan ki baat hai ... vo to jaroor aana chaahiye kyonki ye dhan is janta ka hi hai ...
श्री पद्मनाभ मन्दिर की सम्पत्ति को मीडिया ने यूँ सरेआम उजागर करके क्या भारत की सुरक्षा को खतरे में नहीं डाल दिया है? अमेरिका की अर्थव्यवस्था की वाट लगी पड़ी है, मध्य-पूर्व के देशों में अस्थिरता फ़ैली हुई है, यूरोप के कुछ देश भूखे-नंगे हो रहे हैं या हो चुके हैं, ऐसी परिस्थिति में भारत के मन्दिरों की अकूत सम्पत्ति का यह प्रदर्शन कहाँ तक उचित है?
- पहले भी अंग्रेज और मुगल हमें लूटने आए थे, लूट कर चले गये… उनकी कई "जायज और नाजायज औलादें" अभी भी यहाँ मौजूद हैं… संसद के 525 सदस्यों में से 250 से अधिक पर लूट-डकैती जैसे आपराधिक मामले चल रहे हैं, कोई नहीं जानता कि इन सांसदों में से कितने, विदेशी शक्तियों के हाथों बिके हुए हैं…
(यह "कोण" सबसे खतरनाक है, क्योंकि अम्बानियों, टाटाओं और जेपीयों के हाथों बिके हुए सांसद इतनी विशाल सम्पत्ति को "ठिकाने लगाने" के लिये "कुछ भी" कर सकते हैं)
- ऐसे में क्या यह कार्रवाई पद्मनाभ मन्दिर, उडुपी मठ, गुरुवायूर, कांची, पुरी, सोमनाथ, काशी विश्वनाथ, वैष्णो देवी, सिद्धिविनायक, स्वर्ण मन्दिर, शिर्डी के साँई इत्यादि जैसे सैकड़ों मन्दिरों की सुरक्षा, यहाँ काम कर रहे ट्रस्टों की विश्वसनीयता, भक्तों की आस्था और श्रद्धा के साथ सामूहिक खिलवाड़ नहीं है? सभी प्रमुख मन्दिरों पर अचानक खतरा मंडराने लगा है…
- भारत इस समय चारों तरफ़ से भिखमंगे और सेकुलर-जिहादी देशों से घिरा हुआ है, इस समय मन्दिरों की सम्पत्ति को सार्वजनिक करना, कहाँ की समझदारी है? (यह तो ऐसे ही हुआ, मानो गुण्डों के मोहल्ले में कोई सेठ कई तोला सोना पहनकर, सब को दिखाता हुआ इतराए)
मीडिया को संयम बरतना चाहिए, लेकिन "ब्रेकिंग न्यूज़" की आपाधापी में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की भी धज्जियाँ उड़ाई जा रही हैं, और ऐसा दर्शाया जा रहा है मानो धन-सम्पत्ति सिर्फ़ मन्दिरों में ही है, चर्च या मस्जिदों में नहीं…
संक्षिप्त में यही कहूँगा के बहुत अच्छी लगी यह पोस्ट . विशेषकर इस्लाम में दान का महत्त्व .
काश की सब समझ पायें इन बातों को .
त्रावणकोरों ने एक लाख करोड़ बनाए 300 साल में..अपने राजा-कलमाड़ी-देवड़ा-मारन* ने केवल तीन साल में तीन लाख करोड़ बना लिए। अब बताओ शक्तिशाली कौन है? (पवार-हसन अली वगैरह इसमें शामिल नहीं है) जय हो… :) :)
धन्यावाद सुरेश चिपलूनकर जी....आपने सही समय पर सही तथ्य को स्पष्ट किया है..अधिकतर तो चिकनी -चुपड़ी ..किसी से पंगा ने लें .अपना उल्लू सीधा वाली बात अपनाते हैं ...जैसे इस्लाम में दान का महत्त्व अच्छा लगा ...इन लोगों को हिन्दू धर्म का न कुछ पता है न जानना चाहते |
--नील शुक्ला- ने भी एक तथ्यात्मक बात की ओर ध्यान दिलाया है...
---यह धनसंग्रह वास्तव में उसी प्रकार है जैसे आज सरकारों के पास आकस्मिक फंड के रूप में अकूत धन, विदेशी मुद्रा, स्वर्ण आदि जमा होता है|--
--सरकार को चाहिए था कि इन संस्थाओं से यह धन विकास के लिए उधार लिया जाता ( राजाओं के काल में ये संस्थान युद्ध आदि आपदाकाल में शासकों को धन दिया करते थे ---(उस समय भारत इतना चूसा हुआ, लुटा-पिटा गरीब देश नहीं था अत: दैनिक व्यवस्था में इस धन की आवश्यकता नहीं होती थी )....जो .समय आने पर वापस भी किया जा सकता है..
यह धन चोरी का भ्रष्टाचार का व विदेशों/ विदेशी सरकारों से धर्म के नाम पर सहायता रूप में, व चुपचाप से आया हुआ धन नहीं है ...
superb
इस सन्दर्भ में दो तीन बातें है भाई जी--
---जहाँ तक मन्दिरों की बात है इस सम्पत्ति का मिलना कोई आश्चर्य नहीं पैदा करता क्योंकि हिन्दू मान्यता में जो आप देते है, ऐसा माना जाता है वह वस्तु स्वर्ग में आपको मिलेगी.
--आस्थावान लोग इसी प्रत्याशा में अपनें सामर्थ्य अनुसार दान देते है.
---इस मंदिर में जो खजाना मिला है उसके पीछे एक इतिहास और भी है,वह यह कि विदेशी लुटेरों से धन बचाने के लिए भी गोपनीय रूप से तहखानों में यह आभूषण रखे गये.
---इतिहासकारों का मानना है की अंग्रेज शासकों की नजर राज खजाने पर थी तथा उस लूट को बचाने के लिए गोपनीय रूप से राज परिवार का खजाना मन्दिर के तहखाने में छुपा दिया गया.
और अंतिम बात -जिस खजाने को विदेशी लुटेरों से बचाया गया आज इसकी गारंटी कौन लेगा कि उसका शत-प्रतिशत इमानदारी के साथ जनहित के कामों में खर्च किया जायेगा?
लेकिन वर्तमान दौर में यदि देश की जनता चाहती है कि इसका सदुपयोग जनहित में होना चाहिए तो अवश्य उनकी भावना का सम्मान किया जाना चाहिए.
‘मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती‘
मस्जिद में तो न कोई चढ़ावा चढ़ता है और न ही वहां कोई गर्भगृह होता है। इसके बावजूद भी मस्जिदों के पास ज़मीन व दुकान आदि के रूप मे प्रॉपर्टी तो है ही। मस्जिदों के मुक़ाबले मज़ारों के मुजाविरों पर पंडों की भांति मोटा माल है। इनमें से कोई नेताओं के धन पर बुरी नज़र डालेगा तो इनकी भी पड़ताल कर ली जाएगी। यहां तो सारे काम राजनीति से प्रेरित होते हैं।
लेकिन ख़शी की बात यह है कि जल्दी ही मामला पट जाएगा। ऊंट को पहाड़ तले लाने के लिए यह सारी क़वायद की जा रही है।
दान और ख़ैरात देना हिन्दू और मुसलमानों का रिवाज है। यह पात्र व्यक्ति तक पहुंच जाए। अब इसे भी दोनों को ही देखने की ज़रूरत है।
बाबा रामदेव जी चाहते थे कि विदेशों में जमा ख़ज़ाना भारत लाया जाए और सरकार ने दिखा दिया कि बाहर से लाने की ज़रूरत तो बाद में पड़ेगी, देश के धर्मस्थलों में बहुत जमा है ख़ज़ाना।
आप कहें तो पहले इसी का राष्ट्रीकरण कर दिया जाए ?
अब न तो बाबा जी से जवाब देते बन रहा है और न ही बीजेपी से।
...लेकिन यह सब हुआ क्यों और अब क्या होगा आगे ?
जानने के लिए देखिए यह लिंक
धर्म और राजनीति के धंधेबाजों की फंदेबाज़ी Indian Tradition
डॉ मनोज मिश्रा जी, यह भी सत्य है की यदि इस पैसे का इस्तेमाल गरीबों की मदद या स्कूल ,अस्पताल बनाने के लिए किया जाए तो आज के भ्रष्ट समाज मैं इस बात की गारंटी नहीं की इस्तेमाल सही होगा और चोर इन धन को खा जाएं इस से बेहतर है की किसी जगह जमा रहे.
asaliyat to yahi hai ki videshi luteron se bachaane ke liye hi dhan ko tatkalin raja-maharajaon dwara ise mandiron ke tahkhano ya aur bhi kahin chhupaaya gaya .
kam se kam yah dhan jo aamjan dwara shradhaswroop diya gaya , wah abhi surakshit to hai ? ise supreem court ki nigraani me surakshit rakha jaye jab tak yah sunishchit na ho sake ki iska ek-ek paisa jan-kalyaan ke karyon me hi kharch hoga.
rahi baat videshon me jama kale dhan ki....to use is aadhar par nahi chhoda ja sakta ki hamaare desh me hi bahut dhan hai.videshon me jama kaale dhan ki ek-ek pai swdesh lana hoga.
aur fir desh ke bahar evam andar ke.....dhan ka upyog aam janta ke hit ke liye kiya jana chahiye.
आप का बलाँग मूझे पढ कर आच्चछा लगा , मैं बी एक बलाँग खोली हू
लिकं हैhttp://sarapyar.blogspot.com/
मै नइ हु आप सब का सपोट chheya
joint my follower
अच्छी पोस्ट हैं, लेकिन एक बात शायद ये भी सत्य हैं कि अगर धन को ईस तरह से ना छुपाया गया होता तो ये धन आज कि तारीख में लन्दन में पड़ा मिलता.
लेकिन अब इसका सही इस्तेमाल होना चाहिए और सही इस्तेमाल हैं देश का विकाश.
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