महिलाओं के साथ बलात्कार की घटनाएं अतनी आम हो गयी हैं की आज किसी भी दिन के अखबार को उठा लें २-४ खबरें तो मिल ही जाएंगे. इसके बहुत से कारण हैं जिनमें एक कारण है महिलाओं को दैहिक स्तर पर देखने की मानसिकता और महिलाओं का भी इसमें सहयोग है.
चाहे वह सौंदर्य प्रतियोगिताएं हों या फिर किसी कार्यक्रम में अतिथियों का स्वागत, महिलाओं की भूमिका दैहिक प्रस्तुति दिखाई देती है. अन्यथा क्या कारण है कि एयर होस्टेस के लिए सुंदर युवतियां ही चाहिए होती हैं? क्या कारण है कि कार्यक्रमों में अतिथियों के स्वागत युवतियों से ही करवाया जाता है? क्या कारण है कि पुरूषों के सामानों के विज्ञापन आदि के लिए सुंदर युवतियां ही चाहिए होती हैं? क्या कारन है की विज्ञापनों और फिल्मों मैं महिलाओं के शरीर का प्रदर्शन पे ही ज़ोर दिया जाता है? क्या इन सबके पीछे महिलाओं को दैहिक रूप में देखने की मानसिकता निहित नहीं है? क्या शीला की जवानी, मुन्नी बदनाम हुई और इस जैसे तमाम आइटम गाने महिलाओं के प्रति केवल और केवल दैहिक आकर्षण पैदा नहीं करते हैं?
यदि हाँ तो महिलाएं इसके खिलाफ आवाज़ उठाने के जगह खुद तंग कपड़ों मैं शारीरिक प्रदर्शन करके खुश होती हैं ? क्यों महिलाएं इन्ही फिल्म और विज्ञापनों मैं दिखने वाली अर्धनग्न मोडल और एक्ट्रेस की नक़ल करती हैं?
मैं मानता हूँ की ऐसी महिलाओं की संख्या जो जाने या अनजाने मैं इस काम मैं सहयोग कर रही हैं कम है लेकिन जितनी है वो भी अधिक है और एक बड़ा कारण बन रही है.
19 comments:
मेरे विचार में बात महिलाओं के कपड़ों की नहीं पुरुषों की मानसिकता की है. यूरोप में लड़कियाँ छोटे छोटे कपड़े पहन कर निकलती हैं तो उन्हें कुछ नहीं होता, हमारे यहाँ बुरके में भी निकलें तो उन पर दोष लगाते हैं कि मुँह ठीक से नहीं ढका था, या ज़ोर से हँसी थी. जहाँ पुरुष मानसिकता जँगली हो, वहाँ लड़कियाँ कुछ भी कर लें, उन्हें छेड़ने तंग करने वालों की कमी नहीं और हर बार दोष लड़कियों को ही दिया जायेगा.
Sunil Deepak जी मानसिकता तो पुरुषों कि ही मानसिकता कि बात यहाँ हो रही है. क्यों महिलाओं को दैहिक स्तर पर ही देखा जता है और क्यों महिलाएं भी खुद के शरीर को दिखा के भोग कि वस्तु बनने मैं ख़ुशी महसूस करती हैं? औरत के शरीर के प्रति मर्द का और मर्द के शरीर के प्रति औरत का आकर्षित होना फितरती है ,इस से आप कैसे इनकार कर सकते हैं. ? यह किसने आप को बता दिया कि यूरोप में लड़कियाँ छोटे छोटे कपड़े पहन कर घूमती हैं तो उन्हें कोई कुछ नहीं कहता. वहाँ तो हिंदुस्तानिओं से अधिक गंदे अल्फाजों मैं उनके बारे मैं और उनके शरीर के बारे मैं बातें कि जाती हैं.
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२-४ तो खबरें खबरों में आ भी जाती हैं, और न जाने कितनों का पता भी नहीं होता...
कुछ चुप हो जातीं हैं, तो कुछ चुप करा दी जातीं हैं...
और जो उदहारण आपने दिए वो एकदम सही... पर ये व्ययसाय कहलाता है, जब तक ऐसे होगा नहीं चीज़ बिकेगी नहीं...
और गेंहू के साथ घुन पिसने" वाली बात पुरानी हो गई अब तो घुन के कारण गेंहू पिस रहा है...
पुरुष मानसिकता की बात सुनील दीपक जी ने बता ही दी है.
आपकी बात से आँशिक रूप से सहमत हूँ. भारत में अधिकतर बलात्कार दलित महिलाओं के साथ होते हैं. केवल इसलिए वे आर्थिक और राजनीतिक रूप से कमज़ोर हैं. उनका कम और तंग कपड़ों या फैशन से सीधे तौर पर कुछ लेना-लेना नहीं. उनके विरुद्ध यह अपराध इस लिए किया जाता है कि वे मानसिक रूप से कभी सशक्त न हो पाएँ और अपमानित जीवन को अपना भाग्य समझती रहें.
Massom Sahab bikul sahi kaha hai aapne, aaye din hum paper me padhte hai ki balatkar ho gya .are agr kasurwaar purush hai to issekam kasurwar mahilaye bhi nahi hai kyki we ho to kam kapdo me nikalti hai bahar aur khud....................
phir ab dosh dena ki aisa ho gya.kya matlab hai iska...........
bhale hi inki sankhya kam ho.pr talab me kek gandi machli poora talab to ganda ker deti hai na ..so is gandi machli ko bhi talab se bahar ker den chahiye..................
ha purusho ko bhi apni soch badalni hogi
मासूम जी,
युरोप ही नही, उत्तरी अमरीका, आष्ट्रेलीया मे महिलाये छोटे कपड़े पहन कर घूमती है। कोई छिंटाकसी नही होती। कानो सुनी नही आंखो देखी कह रहा हूं!
सुनिल दिपक जी से पूरी तरह सहमत।
आशीष श्रीवास्तव जी यहाँ छिंटाकसी कि बात नहीं हो रही बल्कि औरत के अर्धनग्न शरीर को देख कर मर्द क्या व्यवहार करता है या कर सकता है इसकी बात हो रही है. लेख़ को पढना ज़रूरी हुआ करता है टिप्पणी करने के पहले. ना जाने कितने न्यूडिस्ट बीच हैं और समुंद्री किनारे जहाँ कपडे भी ना पहनो तो कोई कुछ नहीं कहता. क्या इस से यह साबित हुआ कि मर्द औरत के नग्न या अर्धनग्न शरीर को देख के उत्तेजित नहीं होता?
पूजा जी एकदम सही कहा कि "ये व्ययसाय कहलाता है, जब तक ऐसे होगा नहीं चीज़ बिकेगी नहीं..." और खरीददार भी नहीं चाहेगा कि यह व्यवसाय रुके और वो इन लज्ज़तों से वंचित रह जाए.
मर्द औरत के नग्न या अर्धनग्न शरीर को देख के उत्तेजित नहीं होता?
तो इसके लिये जरुरी हैं की आप ऐसे आलेख लिखे जिनमे पुरुषो को ये समझया जाए की कैसे वो इस समस्या से निदान पा सकते हैं क्युकी डॉक्टर के पास भी इलाज हैं और योग में भी । आलेख लिखिये की कैसे आत्म सयम रखना सीख सकते हैं पुरुष अपनी काम वासना पर ।
पुरुष की इस कमी के लिये आप चाहते हैं की औरत को कपड़ो में ढंका रहना चाहिये तो आप कुछ नया नहीं लिख रहे हैं बलात्कार में दोषी स्त्री के कम कपड़े होते हैं , बलात्कार स्त्री खुद करवाती हैं ये सब आप से पहले सारथि ब्लॉग जे सी शास्त्री लिख चुके हैं लेकिन उन्होंने भी कड़ियाँ वही ख़तम की हैं
पुरुष के लिये दिशा निर्देश तक पहुचते पहुचे वो खुद ही ब्लॉग जगत से विलीन हो गये
महिलाओं के साथ-साथ,
खान-पान, आचार-व्यवहार और अधनंगा पहनावा बी तो इसका जिम्मेदार है!
Anonymous @ आपने कहा कि "मर्द औरत के नग्न या अर्धनग्न शरीर को देख के उत्तेजित नहीं होता? " जबकि यह शब्द कोई मर्द तो नहीं कह सकता हाँ नामर्द या औरत कह सकते हैं. समाज मैं वैसे भी १०-१२% ऐसे लोग हैं जो समाज मैं औरतों को जंगली जानवरों कि तरह निर्वस्त्र घुमते देखना चाहते हैं और यही समाज को गन्दा कर रहे हैं. बलात्कार का ज़िम्मेदार औरत ,मर्द ,समाज की कानून व्यवस्था और मीडिया सभी हो सकते हैं. केवल औरत को कोई जिमेदार नहीं ठहरा सकता.
वैसे आप अपने नाम से भी टिप्पणी कर सकते हैं.
स्त्री देह को परोस कर दुनिया में कमाया जा रहा है खरबों रुपया प्रति वर्ष
नारी त्याग की मूर्ति होती है, वह मां, बहन, बेटी और पत्नी होती है। अक्सर औरतें ख़ुद को इन्हीं रूपों में गौरवान्वित भी समझती हैं लेकिन औरत का एक रूप और भी है जिसे तवायफ़ और वेश्या कहा जाता है। ये औरतें पैसों के लालच में अपने नारीत्व का अपमान करती हैं। ये किसी नैतिक पाबंदी को नहीं मानती हैं।
इनका मानना है कि हम अपनी मनमर्ज़ी करने के लिए आज़ाद हैं।
हमें नैतिकता का उपदेश देना बंद कर दिया जाए।
यही शब्द इनकी पहचान हैं।
इनका बदन ही इनकी दुकान हैं।
मर्द इनके लिए ग्राहक है।
पुलिस इनके लिए घातक है।
ऐसी औरतें जब उपदेश से नहीं मानतीं तो फिर ये पुलिस के द्वारा धर ली जाती हैं।
पिछले दिनों एक के बाद एक ऐसे कई सेक्स रैकेट पकड़े गए हैं।
इनके सपोर्टर समाज में बहुत ऊंचे ओहदों पर बैठे हुए हैं। इनके कुकर्मों के समर्थन में आपको ‘नारी‘ भी मिल जाएगी।
इन बुरी औरतों की कुछ समस्याएं भी हो सकती हैं और उन्हें हल किया जाना चाहिए लेकिन ये औरतें भी कुछ समस्याएं पैदा कर रही हैं समाज में, उन्हें बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।
भले घर की औरतें इनके चक्कर में सताई जा रही हैं।
ये लड़कियां भी भले घर की औरतों का रूप धारण करके ही समाज में विचरण करती हैं।
क़ानून से इन्हें डर लगता है लेकिन मोटी आमदनी का लालच उस डर को काफ़ूर कर देता है। इसका इलाज क़ानून के पास नहीं है। इसका इलाज धर्म के पास है लेकिन बुद्धिजीवी होने का ढोंग रचाने वालों ने कह दिया है कि ईश्वर और धर्म सब दक़ियानूसी बातें हैं।
बस , इस तरह नैतिकता की जड़ ही काट डाली।
बहरहाल जो घटना घटी है निम्न लिंक पर क्लिक करके आप उस पर एक नज़र डाल लीजिए और सोचिए कि सीता और गीता का भारत किस तरफ़ जा रहा है ?
कॉन्ट्रैक्ट पर आती हैं लड़कियां, 1 दिन की कमाई 1 लाख - पंकज त्यागी
http://praveenshah2.blogspot.com/2011/07/blog-post_9840.html
agree with u masoom jee
जिनमें एक कारण है महिलाओं को दैहिक स्तर पर देखने की मानसिकता और महिलाओं का भी इसमें सहयोग है.
@ आदरणीय सुनील दीपक जी और आशीष श्रीवास्तव जी ! अमेरिका और यूरोप में क्या होता है औरत के साथ घर से बाहर , कार्यस्थल पर ही , देखिए
कार्यस्थल पर बेलगाम यौन शोषण
न्यूयार्क। कार्यस्थल पर महिला कर्मियों का यौन शोषण रोकने के लिए चाहे कितने ही कानून बन जाएं लेकिन इस पर पूरी तरह लगाम नहीं लग पा रही है। युनिवर्सिटी ऑफ़ मिशिगन के हालिया सर्वे में पता चला है कि प्रति दस में मे नौ महिलाएं कार्यस्थल पर विभिन्न प्रकार के शोषण की शिकार हैं। इस शोध में अमेरिकी सेना और विधि क्षेत्र के पेशेवरों को शामिल किया गया था। सर्वे में शामिल महिलाओं ने बताया कि प्रमोशन और मोटी सैलरी का लालच देकर अनुचित पेशकश की गई।
अमर उजाला 12 अगस्त, 2010
चलिए आप आयीं तो सही रचना जी. आप का केवल एक ही मुद्दा दिखता है अर्धनग्न औरतों को घुमाने का अगेंडा . हर समय एक ही राग अच्छा नहीं होता. मुद्दा है औरतों पे हो रहे ज़ुल्म को रूकने का. कारणों मैं फर्क हो सकता है. अपनी अपनी सोच है लेकिन आप की टिप्पणी से तो
ऐसा लगता है आपको महिलाओं पे हो रहे ज़ुल्म का हल तलाशने की जगह हर जगह विवाद खड़ा करो और रचना नाम ही है किसी भी मुद्दे को धर्म से जोड़ कर विवाद खड़ा कर देना का.
ऐसा ना करें और महिलाओं की बेहतरी के बारे मैं सोंचें. एक औरत यदि उनके बारे मैं नहीं सोंचेगी तो पुरुष तो और ही सर चढ़ जाएगा. पुरुष तो भोग की वस्तु समझ बैठा है महिलाओं को आप क्यों उनका साथ दे रही हैं?
वैसे आप को बता दूं हिन्दू धर्म हो या मुस्लिम या ईसाई औरत को अर्धनग्न समाज मैं घूमने की इजाज़त कोई नहीं देता. सभी धर्म मैं महिलाओं की इज्ज़त करने की बात मौजूद है.इसे समझने के लिए आप को सभी धर्मो को पढना होगा. धर्म झगडे करवाने का नाम नहीं प्यार फैलाने का नाम है. वैसे पोल पे नज़र डाल लें आप को खुद पता चल जाएगा हक़ किसे साथ है.
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