अपने जीवन काल मैं कोई इंसान किस से दोस्ती करे, किसके साथ उठे बैठे यह जानना बहुत ज़रूरी हुआ करता है और यह सिखाता है तजुर्बा. केवल अच्छे कि संगत करो और बुरे से बचो जान लेना काफी नहीं.
सब से बड़ी बात यह होती है कि दोस्ती या दुश्मनी जो भी करो आज़ाद इंसान से करो. और आज़ाद इंसान उसे कहते हैं जो किसी के दबाव मैं या किसी और को खुश करने के लिए अपने जीवन के फैसले ना लिया करता हो.
और जो इंसान किसी और को खुश करने के लिए या दूसरों के दबाव मैं अपने जीवन के फैसले लिया करता हो उसे कहते हैं गुलाम.
ऐसे इंसान की खुद कि ना तो कोई पसंद होती है और ना कि कोई विचार धारा. ऐसा इंसान दोस्ती तो एक बार खुद कि पसंद से कर लेता है लेकिन उसपे काएम नहीं रह पाता.
इंसान आजादी पसंद करता है और गुलामी किसी मजबूरी के कारण से कुबूल करता है और जिसने खुद का ज़मीर बेच दिया हो वो क्या दोस्ती या रिश्ते निभाएगा.
इसलिए कभी ना करो गुलामो से दोस्ती क्योंकि इसमें होता है नुकसान हमेशा.
सब से बड़ी बात यह होती है कि दोस्ती या दुश्मनी जो भी करो आज़ाद इंसान से करो. और आज़ाद इंसान उसे कहते हैं जो किसी के दबाव मैं या किसी और को खुश करने के लिए अपने जीवन के फैसले ना लिया करता हो.
और जो इंसान किसी और को खुश करने के लिए या दूसरों के दबाव मैं अपने जीवन के फैसले लिया करता हो उसे कहते हैं गुलाम.
ऐसे इंसान की खुद कि ना तो कोई पसंद होती है और ना कि कोई विचार धारा. ऐसा इंसान दोस्ती तो एक बार खुद कि पसंद से कर लेता है लेकिन उसपे काएम नहीं रह पाता.
इंसान आजादी पसंद करता है और गुलामी किसी मजबूरी के कारण से कुबूल करता है और जिसने खुद का ज़मीर बेच दिया हो वो क्या दोस्ती या रिश्ते निभाएगा.
इसलिए कभी ना करो गुलामो से दोस्ती क्योंकि इसमें होता है नुकसान हमेशा.
5 comments:
सुविचार
सुन्दर प्रस्तुति
बशुत सुन्दर सार्थक अभिव्यक्ति| धन्यवाद|
सही है..
बढ़िया प्रस्तुति...
लोग समझते हैं कि गुलामी प्रथा का ख़ात्मा हो गया है लेकिन आपकी पोस्ट से पता चला कि रूप बदलकर यह आज भी जारी है ज़मीर फ़रोशों में ।
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