जब तक इंसान जिंदा रहता है उसके साथ साथ का एक रिश्तों का जाल सा चलता रहता है. कोई भाई है , कोई दोस्त है, कोई दफ्तर का साथी है तो कोई दुश्मन हैं. कोई उसे देख खुश होता है कोई बुरा कहता. इन रिश्तों का उसकी म्रत्यु के साथ ही अंत सा हो जाता है. अब रह जाती हैं उसकी अच्छी बुरी यादें .
किसी भी शख्स में मोजूद अच्छाईयों को देखो और बुराईयों को नज़रंदाज़ करो यह जीवन का वो उसूल है जो हमेशा सुख देता है. हमारी आदत ठीक इसके उलट है वो यह कि किसी भी इंसान से मिलो तो पहले उसकी कमियों को बुराईयों को तलाशो. हमारी मिसाल उस मक्खी जैसी हो गयी हैं जो शरीर में गंदी जगह को तलाश के उसी पे जा बैठती है.
वैसे तो हम में अभी इनती इंसानियत बाकी है कि जब कोई मर जाता है तो उसकी बुराई करना , उसकी कमियों को याद करना हमें अच्छा नहीं लगता. और अगर कोई बुराई करता भी है तो यही कहते हैं जाने दो अब वो नहीं रहा क्या उसकी कमियाँ गिनाना.
लेकिन ऐसे भी लोग मौजूद हैं जो केवल इसलिए कि मरने वाला उनसे अधिक होशियार था और उसके जीवन काल में उस से किसी विषय पे बहस के बाद जीत संभव नहीं थी ,उसके जीवन काम में तो उसे पिता तुल्य बताते हैं लेकिन मरने के बाद उसकी आलोचना करने लगते हैं.
क्यों कि यह जानते हैं अब मरने वाला जवाब देने के लिए आने वाला नहीं. झूट सच जो चाहे उसके नाम से बोलो और अपने दिल की हर वो भड़ास निकाल लो जो उसके जीवन काल में नहीं निकाली जा सकी.
मुझे तो ऐसी हरकत कायरता के सिवा कुछ और नहीं लगती.क्या आप को यह किसी समझदार और शेरदिल इंसान का काम लगता है?
किसी भी शख्स में मोजूद अच्छाईयों को देखो और बुराईयों को नज़रंदाज़ करो यह जीवन का वो उसूल है जो हमेशा सुख देता है. हमारी आदत ठीक इसके उलट है वो यह कि किसी भी इंसान से मिलो तो पहले उसकी कमियों को बुराईयों को तलाशो. हमारी मिसाल उस मक्खी जैसी हो गयी हैं जो शरीर में गंदी जगह को तलाश के उसी पे जा बैठती है.
वैसे तो हम में अभी इनती इंसानियत बाकी है कि जब कोई मर जाता है तो उसकी बुराई करना , उसकी कमियों को याद करना हमें अच्छा नहीं लगता. और अगर कोई बुराई करता भी है तो यही कहते हैं जाने दो अब वो नहीं रहा क्या उसकी कमियाँ गिनाना.
लेकिन ऐसे भी लोग मौजूद हैं जो केवल इसलिए कि मरने वाला उनसे अधिक होशियार था और उसके जीवन काल में उस से किसी विषय पे बहस के बाद जीत संभव नहीं थी ,उसके जीवन काम में तो उसे पिता तुल्य बताते हैं लेकिन मरने के बाद उसकी आलोचना करने लगते हैं.
क्यों कि यह जानते हैं अब मरने वाला जवाब देने के लिए आने वाला नहीं. झूट सच जो चाहे उसके नाम से बोलो और अपने दिल की हर वो भड़ास निकाल लो जो उसके जीवन काल में नहीं निकाली जा सकी.
मुझे तो ऐसी हरकत कायरता के सिवा कुछ और नहीं लगती.क्या आप को यह किसी समझदार और शेरदिल इंसान का काम लगता है?
31 comments:
आसमान की तरफ मुंह कर थूकने से वो खुद पर ही गिरती है...आसमान का कुछ नहीं बिगड़ता...
जय हिंद...
शिक्षाप्रद आलेख और उपयोगी सुझाव देने के लिए आभार!
sahi baat kahi masoom bhai
sahi baat kahi masoom bhai
आड से कहो
न झाड से कहो
जो कहना है
दहाड के कहो
रात में कहो
या भोर में कहो
जब भी कहो
जोर से कहो
लाड से कहो
दुलार से कहो
सही चाहे कहो
पुचकार के कहो
मरणोपरांत कहो
जीवनोपरांत कहो
जो चाहे कहो
भली बात कहो
क्या बड़ा ब्लॉगर टंकी पर ज़रूर चढता है ?
मासूम जी
एक आम बात हैं जब भी क़ोई मरता हैं हम उसको प्रणाम करते हैं
और उतना ही आम हैं की क़ोई अगर हमारे साथ अच्छा हैं तो जरुरी नहीं वो आप के साथ भी अच्छा हैं
वरना बहुत से मरने वाले लोगो के घरवालो को को भी ये कहते सूना जा सकता हैं
अच्छा हुआ चला गया जान छुटी
कौन क्या लिखता हैं ये उस पर निर्भर करता हैं की मरने वाले से उसके सम्बन्ध कैसे थे और क़ोई क्यूँ लिखता हैं ये उस से बेहतर कौन जान सकता हैं
क्युकी इस पोस्ट में सन्दर्भ नहीं दिया हैं इस लिये इस पर विस्तार से बात नहीं की जा सकती हैं
कुछ लोग आज भी गाँधी जी को गाली देते हैं और नाथू राम गोडसे को सही मानते हैं वही साउथ में रावण पूजा जाता हैं और नोर्थ में राम ।
वो कहते हें ना जाकी रही भावना जैसी
रचना जी नेता या उपदेशक के बारे मैं यदि कोई ग़लत बात सामने आती है तो उसे सभी के सामने लाना बहुत बार आवश्यक हो जाता है क्यों कि हम में से बहुत से लोग उनके बताये रास्ते पे चलके गुमराह हो सकते हैं. लेकिन एक आम इंसान जो दुनिया से चला गया उसका पीछा क्या पकड़ना और अगर आलोचना करनी ही थी तो उसके जीवित रहते करनी चाहिए जिस से वो भी तो अपनी सफाई मैं कुछ कह सके. मरने के बाद आलोचना इसी लिए कायरता है क्यों कि सामने वाला सफयीदेने के लिए मौजूद नहीं जिसका फायदा लेते हुई आलोचना कि जा रही होती है.
मेरे लेख सभी के लिए होते हैं किसी सन्दर्भ कि आवश्यकता इसी लिए नहीं हुआ करती
मुझे तो ऐसी हरकत कायरता के सिवा कुछ और नहीं लगती.क्या आप को यह किसी समझदार और शेरदिल इंसान का काम लगता है?
ये भी किसी मे बुराई खोजने जैसा ही हुआ
आप ने किया तो क्या सही हो गया
किसी के भी आचरण को "कायरता " कह कर आप ने खुद अपनी ही पोस्ट के विरुद्ध लिख दिया अब जो इस मे सहमति दर्ज करा रहे हैं वो किस बात से सहमत हैं
आप खुद कह रहे हैं "किसी भी शख्स में मोजूद अच्छाईयों को देखो और बुराईयों को नज़रंदाज़ करो"
और आप खुद ही दूसरे में बुराई भी खोज रहे हैं उसके कृत्य को गलत और कायरता भरा कह कर
अगर आलोचना करनी ही थी तो उसके जीवित रहते करनी चाहिए जिस से वो भी तो अपनी सफाई मैं कुछ कह सके
बहुत से लोगो तो जीते जी किसी को मरने पर मजबूर करते हैं और सब खामोश तमाशा देखते हैं
जो नहीं रहे उनके प्रति अंध भक्ति भी नहीं हो सकती हैं . सबकी अपनी सोच हैं और सबको उसके हिसाब से चलने का अधिकार हैं , जीने का अधिकार हैं . कौन गलत हैं कौन सही ये हम आप नहीं समय करता हैं साक्ष्य करते हैं
रचना जी मैं किसी व्यक्ति विशेष कि बात नहीं करता और समाज मैं फैली बुराईयों पे लिखता हूं. आप इस लेख को किस शख्स को बुराई कि तरफ ले जा रही हैं मुझे नहीं मालूम लेकिन ऐसा ना करें. आम बुराई को ख़ास ना बनाएं. जब भी किसी इंसान का ज़िक्र करो उसकी अच्छाई बयान करो और बुराई को नज़रंदाज़ यह सत्य है.
कौन किसकी अंध भक्ति करता है यह उसका अपना मसला है. हमें कोई इंसान मरणोपरांत सही नहीं लगता तो उसकी बातों के ना मानें. आलोचना कायरता ही कहलाएगी.
आपने कहा बहुत से लोगो तो जीते जी किसी को मरने पर मजबूर करते हैं और सब खामोश तमाशा देखते हैं. और ऐसा होता भी है लेकिन इसका हल उसके मरने पे आलोचना नहीं उसके जीवित रहते लोगों के सहयोग से उसके ज़ुल्म को रोकना हुआ करता है.
रचना जी मैं किसी व्यक्ति विशेष कि बात नहीं करता और समाज मैं फैली बुराईयों पे लिखता हूं.
ham sabhie yahii kar rahae
आप इस लेख को किस शख्स को बुराई कि तरफ ले जा रही हैं मुझे नहीं मालूम लेकिन ऐसा ना करें. आम बुराई को ख़ास ना बनाएं.
mae kewal is post kae udshyae aur aap ki hi kahin baato ko compare kar rhaee hun
baat marnae vaale ki ho jeenae vaalae ki ho yaa kisi ki bhi ho samaaj me apni baat kehnae kaa hak sabko haen
marnae waale ko namskaar karna sahii haen par agar koi nahin kar saktaa kyuki marnae vaale sae uskae sambandh sahii nahin thae to wo bhi galat nahin haen
marnae waale ko namskaar karna sahii haen par agar koi nahin kar saktaa kyuki marnae vaale sae uskae sambandh sahii nahin thae to wo bhi galat nahin haen
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main kahaan kah reha hoon ki aisa na karein lekin ise kayarta hee kaha jaega kyon ki jeevan main uski tareef ki aur amrne ke baad burayee.
main kahaan kah reha hoon ki aisa na karein lekin ise kayarta hee kaha jaega kyon ki jeevan main uski tareef ki aur amrne ke baad burayee.
masoom ji
tabhie to maene kehaa aap ne kisi vishash par likhaa aur sandarbh nahin diyaa
samaj aur duniyaa me nitya hi kuchh hotaa haen raam ki taareef bhi hotii haen buraii bhi
ravan jalaya bhi jataa haen pujaa bhi
so bina sandarbh kyaa charcha ho saktee haen nahin
आप सही फ़रमा रहे हैं जनाब!
सही बात है..
आलोचना, समालोचना, समीक्षा तो कभी भी किसी की भी की जा सकती है। हाँ, निन्दा तो जीवित व्यक्ति की भी नहीं करनी चाहिए।
आपकी बात सही लग रही है लेकिन साहित्य में तो मरे हुओं की आलोचना भी की जाती है :))
मैं इस संबंध में कुछ भूषण जैसी राय रखता हूँ ...
यदि बात समझ आते-आते देर हो जाये और आलोच्य व्यक्ति अल्लाह को प्यारा हो जाये .. तो क्या उसपर बोफोर्स घोटाले जैसे सारे दोष क्षमा हो जाने चाहिए?.... यदि लालू जी सिधार जाएँ.. या फिर सोनिया जी गोड के घर चली जाएँ तो क्या उनके किये-धरे की निष्पक्ष जाँच उनके बाद नहीं की जानी चाहिए?... काले-चिट्ठे कई बार बाद में ही खुल पाते हैं...
wahaa pratul kyaa baat kahii
man khush hogyaa
आलोचना, समालोचना, समीक्षा तो कभी भी किसी की भी की जा सकती है। हाँ, निन्दा तो जीवित व्यक्ति की भी नहीं करनी चाहिए।..........
mujhe dinesh dadda ke rai uchit pratit lag rahe hain...........
bas balak ko 'alochna' evam 'ninda'
me firk karna nahi aata.......
yse 'guruwar' ke sandarbh me......
"shabd aur shaili jaisi bhi ho bhavnayen 'masoom' nirmal 'divya' hone chahiyen........
salam.
आदरणीय मासूम जी
मरणोपरांत आलोचना कायरता है यदि - तो किसी जीते इंसान को जानते बूझते व्यंग्य बाण मारना क्या है ? वीरता ??
यह मुझे ही नहीं - किसी को भी सत्य नहीं लग रहा कि आपकी पोस्ट किसी एक के सन्दर्भ में नहीं थी - वह किसी के सन्दर्भ में थी - और है | यूँ बिना नाम लिए किसी पर व्यंग्य के बाण चलाना- क्या कायरता नही ? किसी के जीवन को व्यंग्य के बाण चला कर जीना ही दूभर कर देना - यह क्या वीरता कहलाएगी ? और व्यंग्य भी ऐसे कि किसी का कलेजा चीर जाएँ - और नाम ना लेने की ढाल ऐसी कि वह अपने बचाव में दो शब्द भी न कह पाए - कहे - तो आप कह देंगे कि मैंने तुम्हे तो नहीं कहा था - यह तो सिर्फ एक जनरल वक्तव्य था |
यदि आपको लगता है कि मरणोपरांत बुराई न की जानी चाहिए - तो उस जा चुके व्यक्ति के सन्दर्भ को लेकर जीते जागते मनुष्य पर बाण भी न साधे जाने चाहिए |
किसी के जाने के बाद , उस पर बहस सही नहीं ।
मुझे इतने अलग अलग ख्यालात देख के बहुत ही ख़ुशी हुई. क्यों की इसी से मेरा खुद का ज्ञान भी बढ़ता है. इस संसार में ग़लती हर इंसान कर सकता है और विचारों का अंतर भी एक आम सी बात है.
मेरा स्वम का सोंचना यही है की किसी के जाने के बाद उसकी आत्मा की शांति के लिए दुआ करें, यदि उसकी कोई बात बुरी भी लगी हो तो ख़त्म करें ना की उसकी कमियाँ गिनाएँ या उसकी बुराईयाँ बताएं. क्यों की सामने वाला अब जवाब देने या सफाई देने तो आ नहीं सकता ऐसे में इस काम को कायरता ही कहा जाएगा. यदि कोई व्यक्ति मेरी बात से सहमत नहीं तो यह उसका अधिकार है और में उसके विचारों से सहमती ना होने के बाद भी उसकी इज्ज़त करता हूँ .
आपसे सहमत हूँ मासूम भाई
अरे भाई क्यो नही करनी चाहिये? क्या हिटलर को लोग आज प्यार करते हे? बुरे आदमी की आलोचना उस के मरने के बाद भी करनी चाहिये, बल्कि उस के नाम पर थुकना चाहिये, उस का एक लाभ यह होता हे कि जिंदा आदमी यह सब देख कर सबक लेता हे, ओर मै तो खुब गालिया निकालता हुं, अब कोई भुत बन के आना चाहे तो आये, बुरा आदमी मरते ही कैसे पुजनिया हो सकता हे? यह तो वोही बात हुयी कि गंगा नहा लो पाप धुल जायेगे, नही जी बद हमेशा बद ही रहता हे, अब यह कमीने नेता करेगे तो क्या लोग इन की पुजा करेगे? नही बल्कि इन की समद्धी पर पेशाब करेगे, कोई कितनी ही मुर्तिया बना ले, मरने के बाद इन्हे लोग गालिया ही निकालएगे,ओर अच्छे आदमी , नेक आदमी को इज्जत से ही देखे गे... लाल बहादुर शास्त्री जी को आज तक लोग इज्जत से पुकारते हे, उन का उदारण देते हे, बाकियो को.....?
राज भाटिय़ा जी आप महान हैं. सच यह है कि आप बहुत ही सादगी पसंद इंसान हैं और जिस सन्दर्भ मैं आप ने कुछ कहा है वो सही है. सहमत
मरणोपरांत किसी कि आलोचना कायरता है.
You are right Sir.Even Backbiting of living is not right.
सही बात .
jo chala gaya so chala gaya. usako gali dekar bhi kya haasil hone vala hai. han agar kuchh anukaraniy hai to usaki charcha avashya honi chahie.
vaise kamiyan khojana insani phidrat hai , unhen har kisi men kami najar aa jati hai siva apane.
एक स्वस्थ बहस कभी भी की जाये तो उसमें कोई बुराई नहीं है। बुरे इरादे से की जाने वाली ऐसी बहस जिसमें विपक्ष के सारे विचार, सुझाव व टिप्पणियाँ सेंसर कर दी जायें और असहमति को कुचल दिया जाये, कभी भी सही नहीं होती। यदि इस प्रकार की कायरतापूर्ण बहस या आलोचना मरणोपरांत की जाये तब उसका एक और बुरा पक्ष यह भी होता है कि वह व्यक्ति विशेष वापस आकर सही-ग़लत आरोपों/दस्तावेज़ों को सत्यापित करके माक़ूल जवाब नहीं दे सकता है और बुरे इरादे वाले लोग इस तथ्य का दुरुपयोग करते हैं। एक प्रकार से यह ऐसा मुकदमा हो सकता है जिसमें आरोपी का मुँह सी दिया गया हो। लेकिन करने वाले तो जीवितों के साथ भी ऐसा करते ही हैं।
चर्चा के लिये एक विचारणीय विषय सामने रखने का धन्यवाद।
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