 हिंदी ब्लॉगजगत कि एक बात मुझे बहुत पसंद  और वो है अपने साथियों के ब्लॉग पे नियमित तौर पे आना जाना और टिप्पणी करना. लेकिन मुझे यह बात कभी पसंद नहीं आयी कि टिप्पणी अधिकतर उन्ही ब्लोगर के लेख़ पे करना जिन ब्लोगर को हम जानते हैं या जिनसे वापस  टिप्पणी मिलने कि आशा हो. यह काम हम जा बूझ  के नहीं करते बल्कि जाने अनजाने मैं सबका  देखा देखी इसकी आदत सी पड़ जाती है. और फिर इस चक्कर से हम कभी नहीं निकल पाते. हमें पता  ही नहीं चलता कि कब कौन सा नया ब्लोगर इस ब्लॉगजगत मैं आया और क्या लिख रहा है.
 हिंदी ब्लॉगजगत कि एक बात मुझे बहुत पसंद  और वो है अपने साथियों के ब्लॉग पे नियमित तौर पे आना जाना और टिप्पणी करना. लेकिन मुझे यह बात कभी पसंद नहीं आयी कि टिप्पणी अधिकतर उन्ही ब्लोगर के लेख़ पे करना जिन ब्लोगर को हम जानते हैं या जिनसे वापस  टिप्पणी मिलने कि आशा हो. यह काम हम जा बूझ  के नहीं करते बल्कि जाने अनजाने मैं सबका  देखा देखी इसकी आदत सी पड़ जाती है. और फिर इस चक्कर से हम कभी नहीं निकल पाते. हमें पता  ही नहीं चलता कि कब कौन सा नया ब्लोगर इस ब्लॉगजगत मैं आया और क्या लिख रहा है.  
बहुत दिनों से एक ब्लोगर जनाब अख्तर खान "अकेला" जी को पढता हूँ. एक साल पहले जब मैं इस हिंदी ब्लॉगजगत मैं आया तो यही समझ मैं आता था जिसके पास १००-२०० टिप्पणी हैं वो बड़ा ब्लोगर है और अच्छा लिखता भी है,जिसके पास कोई टिप्पणी नहीं वो अच्छा नहीं लिखता. मैंने भी इसी तराजू से जनाब अख्तर खान अकेला का वज़न करने कि भूल कर डाली. और नतीजे मैं ३-४ महीने उनके अच्छे लेखों को नहीं पढ़ा. धीरे धीरे पता चलने लगा, जनाब अख्तर खान साहब, को ब्लॉग बना लेना सही से नहीं आता, टिप्पणी कहां और कैसे कि जाए, इस ब्लॉगजगत का क्या दस्तूर है, यह भी नहीं मालूम. उनको तो केवल बेहतरीन लिखना और पोस्ट कर देना भर ही आता है.
एक दिन जब अख्तर साहब का लेख "में हिन्दुस्तान हूँ…में मुसलमान हूँ…कहां हिन्दू कहां मुस्लमान " अमन के पैग़ाम के लिए मिला , तो मुझे उनके विचार बहुत पसंद आये और मुझे यकीन हो गया कि इनको पहचानने में मैं ग़लती कर गया.

 जनाब अख्तर खान साहब पेशे से वकील, उर्दू, हिन्दी एवं पत्रकारिता में स्नातकोत्तर, विधि स्नातक, ह्यूमन रिलीफ सोसायटी का महासचिव हैं . लेकिन मेरी नज़र मैं इनकी पहचान केवल इनकी बेहतरीन और इमानदार लेखनी है. किसी से नाराज़गी ना होने के बावजूद किसी ख़ास समूह से जुड़े ना होने के कारण , इनके लेखों को टिप्पणी कम ही मिल पाती है लेकिन जो एक बार इनको पढ़ लेता है , दूसरी बार तलाशता हुआ जाता है. बस मेरी ही तरह हिंदी टाइपिंग मैं ग़लतियाँ ,टाइपिंग का तजुर्बा ना होने के कारण अक्सर हो जाया करती है.
 जनाब अख्तर खान साहब पेशे से वकील, उर्दू, हिन्दी एवं पत्रकारिता में स्नातकोत्तर, विधि स्नातक, ह्यूमन रिलीफ सोसायटी का महासचिव हैं . लेकिन मेरी नज़र मैं इनकी पहचान केवल इनकी बेहतरीन और इमानदार लेखनी है. किसी से नाराज़गी ना होने के बावजूद किसी ख़ास समूह से जुड़े ना होने के कारण , इनके लेखों को टिप्पणी कम ही मिल पाती है लेकिन जो एक बार इनको पढ़ लेता है , दूसरी बार तलाशता हुआ जाता है. बस मेरी ही तरह हिंदी टाइपिंग मैं ग़लतियाँ ,टाइपिंग का तजुर्बा ना होने के कारण अक्सर हो जाया करती है.  
अख्तर खान साहब एक सीधी तबियत के इंसान हैं और जो कुछ लिखते हैं अपने ब्लॉग पे वही उनकी सही पहचान भी है. उनके ब्लॉग से ही पता लगता है वो अपने परिवार और अपने देश, अपने वतन से भी बहुत प्यार करते हैं.
अक्सर बा सलाहियत लोगों के बारे मैं बहुत सी ऐसी बातें भी मशहूर हो जाती हैं जिनका यह पता भी नहीं चलता कि सच है या झूट. वैसे तो अख्तर साहब शायर भी हैं और "अकेला" उनका तखल्लुस है लेकिन सुना है जब साल भर से बेहतरीन लिखने के बावजूद लोगों ने टिप्पणी कम लिखी तो उन्होंने ने अपने नाम के आगे "अकेला" लगा लिया.
यह वो शख्स है जिसने ब्लॉगजगत के दस्तूर को अकेला बदल डाला. कोई टिप्पणी करे ना करे इनकी लेखनी और जोश मैं कोई अंतर नहीं आया और आज हर एक ब्लोगर इनको नाम से भी जानता है और इनकी लेखनी कि ताक़त को भी मानता है. और टिप्पणी कम होने के बाद भी इनके ब्लॉग के पाठक किसी भी अधिक टिप्पणी वाले ब्लॉग से ज्यादा हैं.
जिन्होंने इनको नहीं पढ़ा है ,उनसे यह अवश्य कहूँगा, एक बार अख्तर साहब को अवश्य पढ़ें ,आप इनके लेख और कविताओं को किसी १००-१५० टिप्पणी वाले ब्लोगर से कम नहीं पाएंगे.
अभी अभी खबर मिली कि पाकिस्तान से सेमीफाईनल जीत कर भारत फाईनल में पहुँच गया है। आप सबको बहुत-बहुत शुभकामनाएँ
 
 
 
 
 
 
 
9 comments:
मासूम भाई!
शीर्षक देख कर ही मैं समझ गया था कि आप ने किस के बारे में लिखा है। आप ने अख्तर भाई जैसे बेहतरीन इन्सान को पहचाना तो खूब पर बहुत सस्ते में बख्श भी दिया। मैं तो उन से अक्सर कहता हूँ कि इतनी सारी टाइपिंग और हिज्जे की गलतियाँ उन की उर्दू टीचर पत्नी कैसे बर्दाश्त कर लेती है?
सही कहा मैं भी अख्तर खान जी को पढता हूँ और मुझे उनका लिखा काफी पसंद आता है|
कमेन्ट से किसी को मत तौलिए वह एक छल है
मासूम भाई आपने तो सो सुनार की एक लुहार की कहावत पूरी कर दी आपका इतना प्यार इतना अपनापन देख कर तो सच आँखों से आंसू निकल पढ़े शुक्रिया कह कर में आपका मान कम करने की गुस्ताखी नहीं कर सकता में आपकी कसोटी पर पूरा सही उतरने की कोशिश करूंगा . अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
थोडा वर्तनी की कमजोरी ज़रूर हैं, लेकिन उनका लिखने का अंदाज़ ज़बरदस्त है.... दिल से लिखते हैं और खूब लिखते हैं... मैं तो अक्सर ही पढता हूँ.. अख्तर भाई इतने ज्यादा लेख लिखने की हिम्मत रखने वाले ब्लोगर हैं, इसलिए लेखों के हिसाब से देखो तो उनके कम ही लेख पढ़ पाता हूँ... उस पर भी अख्तर भाई अपने लेख कई-कई जगह लिखते हैं, इससे भी कन्फ्यूज़न हो जाती है... लेकिन उनकी लेखनी का मैं कायल हूँ...और जानता हूँ की इस इंसान में दम है...
अख्तर खान साहब एक सीधी तबियत के इंसान हैं और जो कुछ लिखते हैं अपने ब्लॉग पे वही उनकी सही पहचान भी है
आपने सब कुछ कह दिया "अख्तर खान अकेला " जी के बारे में ...आपका आभार इस व्यक्तित्व से हमारा परिचय करवाने के लिए ...!
"अख्तर खान अकेला " जी के नाम से वाकिफ़ हूँ.कभी उनकी पोस्ट नहीं पढ़ी, कारण भी जान जायेंगे मेरी नीचे की टिप्पणी पढ़कर.
ब्लॉगजगत में सबसे पहले आदमी को नाम से ही टिप्पणियों के माध्यम से पढ़कर ही जाना जाता है.अख्तर खान अकेला जी की भी टिप्पणिया कहीं कहीं दिखीं मुझे मैंने पढ़ा और हर टिप्पणी में पाया की उनकी टिप्पणी का पोस्ट के विषय से कोई सम्बन्ध नहीं रहता .वो अपनी बात कहकर चले जाते दिखे.कई ब्लोगेर ने counter टिप्पणी में लिखा भी की अकेला जी ये क्या लिख कर चले गए. परन्तु अकेला जी का ऐसा ही लिखने का क्रम जारी रहा.
मासूम साहब का हुक्म है और मेरी नज़र में वो एक क़ाबिले-एहतराम शख्सियत हैं इसलिए ये बात आज कहने की हिम्मत जुटा पा रहा हूँ.
nice
अपनी ग़लती का अहसास आपको हुआ , अच्छा लगा कि आपने इसे माना और सुधारा। आपका अमल ब्लॉग जगत के लिए एक मिसाल है । अख़तर साहब की लियाक़त और मुहब्बत में उन्हें भी कोई शक नहीं हो सकता , जिनकी रोज़ी रोटी का ज़रिया ही शक और इल्ज़ाम है ।
अनवर जमाल साहब मैं कभी खुशफहमी मैं नहीं जीता, मैं जानता हूँ कि मुझ मैं क्या कमियाँ है. और उसे मानने मैं कोई बुराई नहीं. मैं कोई साहित्यकार नहीं, एक अदना सा ब्लोगर हूँ. ग़लतियों को ही अपनी अदा बना लेता हूँ.
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