मैंने अपनी नव वर्ष की पहली पोस्ट जो "अमन का पैग़ाम" से पेश की , उसमें कुछ बातें आप सब के सामने रखी " कि स्वस्थ ब्लोगिंग कैसे संभव है? वहाँ चर्चा भी भी चल रही है सहमती और असहमति की, जो एक अच्छी निशानी है. .
मैंने लिखा था की " टिप्पणी हमेशा आप की बात से सहमती जाता के ही आएगी ऐसी आशा करना ग़लत है. और जिनके विचार आप से न मिलें उनके खिलाफ दिल मैं शिकवा रखना भी सही नहीं. जब तक आप ऐसा नहीं करेंगे आप के ब्लॉग पे १०० टिप्पणी तो आ सकती हैं लेकिन इमानदारी से की गयी टिप्पणी नहीं आएगी. किसी भी ब्लोगेर की पोस्ट पे अधिक टिप्पणी का आना उसकी कामयाबी की पहचान नहीं बल्कि अधिक इमानदार टिप्पणी का आना उसकी कामयाबी की पहचान है."
मेरी इस बात को ऐसे समझें की कोई भी इंसान हमेशा सही या हमेशा ग़लत नहीं हुआ करता. यहाँ तक की ज्ञानी भी बहुत सी बातों मैं अलग अलग निष्कर्ष पे पहुँच जाते हैं, क्यों की सबका ज्ञान ,अक्ल और तजुर्बा एक सा नहीं हुआ करता. इसलिए असहमति होने पे आप सामने वाले कि बात का न तो बुरा मानें और न ही उसको कुछ बुरा भला कहें.
टिप्पणी कम हो और लेख पढ़ के की गयी हो तो उसका महत्व अधिक है, फिर चाहे वो सहमती हो या असहमति कोई अंतर नहीं पड़ता.
लेख पढ़ के इमादारी से टिप्पणी करने वालों कि उत्साह को बढ़ाने के लिए मैंने यह फैसला लिया है की हर सप्ताह या महीने ; सब से बेहतरीन टिप्पणी को ,उसके ब्लॉग और तस्वीर के साथ अपने लेख के साथ पेश करूंगा.
असहमत होने पे इस बात का ध्यान अवश्य ध्यान रखे की असहमति का स्तर गिरा हुआ न हो
इस पोस्ट पे टिप्पणी की आवश्यकता नहीं , क्योंकि यहाँ कोई चर्चा नहीं हो रही. हाँ किसे प्रकार की आपत्ति होने पे टिप्पणी की जा सकती है..
मैंने लिखा था की " टिप्पणी हमेशा आप की बात से सहमती जाता के ही आएगी ऐसी आशा करना ग़लत है. और जिनके विचार आप से न मिलें उनके खिलाफ दिल मैं शिकवा रखना भी सही नहीं. जब तक आप ऐसा नहीं करेंगे आप के ब्लॉग पे १०० टिप्पणी तो आ सकती हैं लेकिन इमानदारी से की गयी टिप्पणी नहीं आएगी. किसी भी ब्लोगेर की पोस्ट पे अधिक टिप्पणी का आना उसकी कामयाबी की पहचान नहीं बल्कि अधिक इमानदार टिप्पणी का आना उसकी कामयाबी की पहचान है."
मेरी इस बात को ऐसे समझें की कोई भी इंसान हमेशा सही या हमेशा ग़लत नहीं हुआ करता. यहाँ तक की ज्ञानी भी बहुत सी बातों मैं अलग अलग निष्कर्ष पे पहुँच जाते हैं, क्यों की सबका ज्ञान ,अक्ल और तजुर्बा एक सा नहीं हुआ करता. इसलिए असहमति होने पे आप सामने वाले कि बात का न तो बुरा मानें और न ही उसको कुछ बुरा भला कहें.
टिप्पणी कम हो और लेख पढ़ के की गयी हो तो उसका महत्व अधिक है, फिर चाहे वो सहमती हो या असहमति कोई अंतर नहीं पड़ता.
लेख पढ़ के इमादारी से टिप्पणी करने वालों कि उत्साह को बढ़ाने के लिए मैंने यह फैसला लिया है की हर सप्ताह या महीने ; सब से बेहतरीन टिप्पणी को ,उसके ब्लॉग और तस्वीर के साथ अपने लेख के साथ पेश करूंगा.
इसका मतलब हुआ की हर सप्ताह किसी एक ब्लोगेर की टिप्पणी की चर्चा और तारीफ "अमन के पैग़ाम" से होगी.
आज की चर्चा दिव्या जी की एक बहुत ही सुंदर टिप्पणी है.जिसका मैं साल २०१० कि सबसे अधिक पसंद कि गयी इमानदार टिप्पणी मैं शुमार करता हूँ. ZEAL said... मासूम जी, यदि सभी लोग आप की तरह सोचने लगें तो फिर कोई समस्या ही नहीं बचेगी। लेकिन अफ़सोस तो ये है की आप जैसी सोच वाले विरले ही हैं। इसलिए हर तरह की आवाजें बुलंद होती है। हर तरफ मार-काट, अपने धर्म के लिए लड़ाई देखकर अलग-अलग व्यक्ति के मन में भिन्न-भिन्न विचार आते हैं और लोग उसे व्यक्त करते हैं। वाह-वाही लूटने के लिए भाईचारे की पोस्ट लगाना और वास्तव में दिल में भाई-चारा रखना दोनों में बहुत अंतर हैं। मैंने एक से एक नमूने यहीं ब्लॉग पर देखे हैं जो प्रेम की अलख जलाये घूम रहे हैं। और खुद गोल-मोल पोस्ट लिखकर दूसरों के खिलाफ भड़ास निकालते हैं। आपने चूँकि निवेदन किया था यहाँ आकर अपने विचार रखूं। इसलिए सच ही लिख रही हूँ। वर्ना " बेहतरीन पोस्ट " लिख कर चली जाती हूँ, जहाँ मेरा विचार भिन्न होता है। डरती हूँ ब्लोगर्स से। जिसे देखो वही चिढ़ा बैठा है। इसलिए किसी की पोस्ट पर सच लिखकर क्या फ़ायदा। ज़रा सी भूल चुक हुई नहीं की चिट्ठाजगत पर दस पोस्टें दिव्या के खिलाफ होंगी। और लोग बुरा मानकर आना बंद कर देंगे हैं सो अलग। लोग जितनी दरियादिली पोस्टों में दिखाते हैं, उतने होते नहीं हैं। बात-बात पर बुरा मानने वाले बहुतायत में हैं यहाँ । इसलिए दिल खोल कर लिखने से मैं भी डरती हूँ दूसरों के लेख पर। अपना ब्लॉग ही ठीक है अपने मन की बात कहने के लिए। आभार। यदि आपको मेरी बात बुरी लगे , तो बेहिचक टिपण्णी डिलीट कर दीजियेगा। ……. इस ईद का यह दिन बुराई पे नेकी की फतह का दिन है और शांति और इंसानियत की कोशिश से बेहतर कौन सी नेकी हो सकती है? --- सहमत हूँ आपसे । इंसानियत से बढ़कर , कुछ भी नहीं। |
शायद दिव्या जी की इस टिप्पणी के बाद आप सभी को यह समझ मैं आ गया होगा की अधिकतर ब्लोगर इमानदारी से टिप्पणी करने की जगह सौजन्यता वश टिप्पणी करके अपनी उपस्थिति दिखा के क्यों निकल जाते हैं. और हम इसको अपनी कामयाबी मान के बेवकूफों की तरह टिप्पणी गिन गिन के खुश होते रहते हैं..
इसका हल हमारे ही पास है. लेख लिखो और इमादारी से चर्चा करो.सहमती या असहमति चर्चा का एक अंश है ,दोनों स्थिति मैं टिप्पणी करने वाले का शुक्रिया अदा करो. असहमत होने पे इस बात का ध्यान अवश्य ध्यान रखे की असहमति का स्तर गिरा हुआ न हो
इस पोस्ट पे टिप्पणी की आवश्यकता नहीं , क्योंकि यहाँ कोई चर्चा नहीं हो रही. हाँ किसे प्रकार की आपत्ति होने पे टिप्पणी की जा सकती है..
5 comments:
टिप्पणी कई बार उपस्थिति दर्शाने के लिए भी होती है, वैसे मैंने आपकी यह उपयोगी पोस्ट मनोयोग से पढ़ी है.
राहुल जी हिंदी ब्लॉगजगत मैं टिप्पणी उपस्थिति जताने को या अधिक टिप्पणी वाले ब्लॉग पे टिप्पणी कर के दूसरों को खुद के ब्लॉग पे बुलाने को ही टिप्पणी अधिक की जाती है. आप ने लेख़ पढ़ा इसका शुक्रिया.. हमें बदलना होगा वरना लेखों का सतरत गिरता जाएगा..
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मासूम जी ,
आपने पोस्ट पर मेरी टिपण्णी लगायी है , इसलिए ज्यादा कुछ लिखने के लिए नहीं बचा यहाँ ।
वैसे आपकी जानकारी में तो है ही , की किस तरह कुछ विद्वान् ब्लोगर्स ने मेरे खिलाफ पोस्टें लगा रखी है अपने ब्लॉग पर । उनका उद्देश्य सिर्फ मुझे दूसरों की नजरों में जलील करना है। और गुटबाजी के चलते उनके समर्थक और मुझसे द्वेष रखने वाले वहां अपनी उपस्थिति दर्ज करके इन विकृत मानसिकता वालों का मनोबल भी बढ़ा रहे हैं।
ब्लॉग जगत में इस मानसिकता को देखते हुए , कुछ ब्लोग्स पर टिपण्णी करते हुए भय उत्पन्न होता है।
आभार ।
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आपकी बात से सहमत हूँ ' गुटबाजी ,इर्षा और द्वेष के चलते अच्छे ब्लोगर को लोग टिकने नहीं देते. हमारी कमी यह है की जब यह आग हमको जलाती है तो हमको दर्द होता है जब यह आग दूसरों को जलाती है तो हम कहते हैं हमको पाता नहीं. यह हमारा मसला नहीं.
हम यह भूल जाते हैं की नफरत की आग एक एक करके सबको जला देगी. "अमन का पैग़ाम" भी कुछ नफरत की आग लगाने वालों का शिकार हो रहा है. कोई दोस्त बन के हमला कर रहा है कोई दुश्मन.
मासूम जी, आपने सही लिखा है. आजकल ऐसा ही हो रहा है. सिर्फ उपस्थिति ही दिखानी होती है.
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