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    Tuesday, January 4, 2011

    चलो बनारस की सैर करें भाग एक भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खान

    उस्ताद बिस्मिल्लाह खान का कई साल  मेरा साथ रहा है. जब मैं वाराणसी मैं पढता था तो अक्सर दालमंडी मैं उनके घर आना जाना हुआ करता था. आज कुछ उनके बारे मैं..

    २१ मार्च १९१६ में जन्में उस्ताद बिस्मिल्लाह खान का नाम उनके अम्मा वलीद ने कमरुद्दीन रखा था, पर जब उनके दादा ने नवजात को देखा तो दुआ में हाथ उठाकर बस यही कहा - बिस्मिल्लाह. शायद उनकी छठी इंद्री ने ये इशारा दे दिया था कि उनके घर एक कोहेनूर जन्मा है. उनके वलीद पैगम्बर खान उन दिनों भोजपुर के राजदरबार में शहनाई वादक थे. ३ साल की उम्र में जब वो बनारस अपने मामा के घर गए तो पहली बार अपने मामा और पहले गुरु अली बक्स विलायतु को वाराणसी के काशी विश्वनाथ मन्दिर में शहनाई वादन करते देख बालक हैरान रह गया. नन्हे भांजे में विलायतु साहब को जैसे उनका सबसे प्रिये शिष्य मिल गया था. १९३० से लेकर १९४० के बीच उन्होंने उस्ताद विलायतु के साथ बहुत से मंचों पर संगत की. १४ साल की उम्र में अलाहाबाद संगीत सम्मलेन में उन्होंने पहली बंदिश बजायी. उत्तर प्रदेश के बहुत से लोक संगीत परम्पराओं जैसे ठुमरी, चैती, कजरी, सावनी आदि को उन्होने एक नए रूप में श्रोताओं के सामने रखा और उनके फन के चर्चे मशहूर होने लगे.१९३७ में कलकत्ता में हुए अखिल भारतीय संगीत कांफ्रेंस में पहली बार शहनायी गूंजी इतने बड़े स्तर पर, और संगीत प्रेमी कायल हो गए उस्ताद की उस्तादगी पर.

     

    भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खान का संछिप्त परिचय

    संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार (1956), पद्मश्री (1961), पद्मभूषण (1968), पद्म विभूषण (1980), तालार मौसीकी, ईरान गणतंत्र (1992), फेलो ऑफ संगीत नाटक अकादमी (1994), भारत रत्न (2001) सहित बहुत से  पुरस्कार बिस्मिल्लाह खान को मिले. उस समय ऐसा लगता था की पुरस्कार देने वाली संस्थाएं बिस्मिल्लाह खान को पुरस्कार दे के आपका क़द ऊंचा कर रही हैं. यह थी उस्ताद बिस्मिल्लाह खान का व्यक्तित्व .
    यह बात बहुत कम लोग जानते होंगे की  जब हिन्दुस्तान आज़ाद हुआ तो देश की फ़िजाओं में 15 अगस्त 1947 को  गंगा के घाट के इस लाल के शहनाई की धून दिल्ली के लाल किले से गुंजने लगी, लोग भाव-विभोर होकर झुमने लगे थे. 26 जनवरी 1950 को जब देश में पहला गणतंत्र दिवस मनाया गया तो उस समय भी राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के अनुरोध पर  गंगा के घाट के इस लाल की शहनाई दिल्ली के लाल किले से गुंज उठी थी.

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    7 comments:

    शरद कोकास said... January 5, 2011 at 3:08 AM

    शहनाई का पर्यायवाची नाम है बिसमिल्लाह खान

    M VERMA said... January 5, 2011 at 6:33 AM

    बनारस के इस धरोहर को मेरा सलाम

    Shah Nawaz said... January 5, 2011 at 8:03 AM

    उस्ताद बिस्मिल्लाह खान साहब के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी दी आपने, इस बहाने उन्हें और जानने का मौका मिला... बहुत-बहुत धन्यवाद!

    Rahul Singh said... January 5, 2011 at 9:44 AM

    काशी विश्‍वनाथ मंदिर के अलावा शायद गंगा दशहर, मैहर के शारदा मंदिर जैसे कई अवसरों-केन्‍द्रों से उनका गहरा जुड़ाव रहा, यानि इस सं‍क्षिप्‍त पोस्‍ट से मन नहीं भरा.

    एस एम् मासूम said... January 5, 2011 at 10:02 AM

    Rahul Singh @ यदि आप का दिल नहीं भरा तो मैं उनके जीवन की और बातें भी अवश्य बताऊंगा.. इंतज़ार करें

    Unknown said... January 5, 2011 at 12:15 PM

    हम चाहेंगे कि आप इस महान शख्स के बारे में और लिखें. हम पढ़ना चाहेंगे.. धन्यवाद.

    Unknown said... January 11, 2011 at 4:43 PM

    बिस्मिल्लाह.....

    Item Reviewed: चलो बनारस की सैर करें भाग एक भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खान Rating: 5 Reviewed By: S.M.Masoom
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