आज जब खबरें देख रहा था तो अचानक एक ऐसी खबर पे नज़र पडी जहां कौन सही ओर कौन गलत का फैसला करना मुश्किल लगा | उदयपुर में एक शादी शुदा महिला अपने पडोसी प्रेमी के साथ भाग गयी | गाँव वालों ने उस जोड़े को पकड़ा ओर उसके बाद इनकी सार्वजनिक पिटाई कि गयी फिर इन दोनों को की इज्जत को सरेआम उछाला गया। सरेआम न सिर्फ युवक के बाल काट दिए गए बल्कि महिला के कपड़े भी उतारे गए ओर उसे घुमाया गया | इन्हें गांव के चौपाल में सबके सामने बिठाया गया ओर यह कार्यक्रम ४ घंटे तक चलता रहा इसके बाद मामला पोलिसे के हाथ में चला गया |
इस पूरी खबर में यह बात तो साबित है कि महिला ओर उसका पडोसी इस बात के दोषी हैं कि जब वो महिला शादी शुदा थी तो उसको गैर मर्द के साथ भागने कि आवश्यकता क्या थी ?
लेकिन किसी महिला को दोषी होने के बावजूद सरेआम कपडे उतार के घुमाना भी इन्साफ नहीं बल्कि जुल्म है | ओर जितना वो महिला ओर पुरुष दोषी हैं उतना ही उस गाव के लोग भी |
किसी महिला को सरे आम कपडे उतार के घुमाना उसके किसी भी जुर्म कि सजा नहीं हो सकती |
आज के अन्य लेख
3 comments:
सबसे पहली बात तो यह की वोह लोग होते कौन है सजा देने वाले? गलत-सही का फैसला करना और सजा देना न्यायलय का काम है...
उफ्फ्फ... बेहद शर्मनाक घटना है... आखरी यह दरिंदगी कब तक चलती रहेगी?
आज आम मज़दूर से लेकर ऊंचे ओह्देदारान तक वैचारिक असंतुलन के शिकार देखे जा सकते हैं. इन में से ज़्यादातर लोग बच सकते थे अगर उनकी परवरिश के वक़्त उनके माता पिता ने उनके मानसिक स्वास्थ्य का भी ध्यान रखा होता. माँ की ज़िम्मेदारी बाप के मुक़ाबले थोड़ी ज्यादा है . सभी मर्द बचपन में अपनी माँ के प्रशिक्षण में रहते हैं. अगर माँ अपनी गोद के लाल को सही-ग़लत की तमीज़ दे और हमेशा इन्साफ़ करना सिखाये तो औरतों पर होने वाले ज़ुल्मों को रोका जा सकता है.
पता नहीं क्या हो गया है-
कहाँ जारहे हम ||
Post a Comment