जी हाँ आज इंसानों कि इमानदार प्रजाति विलुप होने के कगार पे है.
आज जब देखिये तब पर्यावरणविदों की चेतावनियाँ आया करती हैं .कोई शोर मचाये हैं सोन चिरैया की प्रजाति अब ख़त्म होने के कगार पे है, किसी को लगता है कि इंसानों के सबसे करीबी समझे जाने वाले बंदरों की ज्यादातर प्रजातियां खत्म होने के कगार पे हैं, कोई मछलियों और कोई शेरों की किसी प्रजाति के ख़त्म होने कि चिंता कर रहा है और इसका कारण बताया जा रहा है कि इन जानवरों के आश्रय स्थलों का तेजी से विनाश.
यह यकीनन एक बड़ी चिंता का विषय है लेकिन इस विकास के दौर मैं जहां जंगलों को काट के इंसानी आबादी, मैं बदला जा रहा है , यह काम बहुत आसान नहीं लगता है और वैसे भी प्रजाति कोई भी विलुप्त हो जाए ,हम इंसानों के पास दौलत आती रहना चाहिए. आज इसी को तरक्की कहा जाता है.
इस भ्रष्टाचार के युग मैं इमानदार इंसान या तो ग़रीबी मैं जी रहा है, या तो ख़ुदकुशी कर ले रहा है या फिर ज़ुल्म का शिकार हो के मरता जा रहा है.
जानवरों और पेड़ पोधों की विलुप होती जा रही प्रजातियों कि चिंता करने वाला इंसान आज के समाज से अच्छे संस्कारों और इमानदार इंसानों के विलुप्त होते जाने की चिंता क्यों नहीं करता? क्यों नहीं ऐसा समाज बनाने की कोशिश करता जहां इमानदार इंसान भी इज्ज़त से जी सके? क्यों नहीं ऐसा समाज बनाने कि कोशिश करता जहां भ्रष्ट इन्सान विपुप्त होने के कगार पे पहुँच जाए?
आज सबसे बड़ा सवाल यह है कि इंसानों कि इस इमानदार प्रजाति को बचाने की मुहीम कौन चलाएगा?
आज जब देखिये तब पर्यावरणविदों की चेतावनियाँ आया करती हैं .कोई शोर मचाये हैं सोन चिरैया की प्रजाति अब ख़त्म होने के कगार पे है, किसी को लगता है कि इंसानों के सबसे करीबी समझे जाने वाले बंदरों की ज्यादातर प्रजातियां खत्म होने के कगार पे हैं, कोई मछलियों और कोई शेरों की किसी प्रजाति के ख़त्म होने कि चिंता कर रहा है और इसका कारण बताया जा रहा है कि इन जानवरों के आश्रय स्थलों का तेजी से विनाश.
यह यकीनन एक बड़ी चिंता का विषय है लेकिन इस विकास के दौर मैं जहां जंगलों को काट के इंसानी आबादी, मैं बदला जा रहा है , यह काम बहुत आसान नहीं लगता है और वैसे भी प्रजाति कोई भी विलुप्त हो जाए ,हम इंसानों के पास दौलत आती रहना चाहिए. आज इसी को तरक्की कहा जाता है.
इस भ्रष्टाचार के युग मैं इमानदार इंसान या तो ग़रीबी मैं जी रहा है, या तो ख़ुदकुशी कर ले रहा है या फिर ज़ुल्म का शिकार हो के मरता जा रहा है.
जानवरों और पेड़ पोधों की विलुप होती जा रही प्रजातियों कि चिंता करने वाला इंसान आज के समाज से अच्छे संस्कारों और इमानदार इंसानों के विलुप्त होते जाने की चिंता क्यों नहीं करता? क्यों नहीं ऐसा समाज बनाने की कोशिश करता जहां इमानदार इंसान भी इज्ज़त से जी सके? क्यों नहीं ऐसा समाज बनाने कि कोशिश करता जहां भ्रष्ट इन्सान विपुप्त होने के कगार पे पहुँच जाए?
आज सबसे बड़ा सवाल यह है कि इंसानों कि इस इमानदार प्रजाति को बचाने की मुहीम कौन चलाएगा?
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11 comments:
han khudh
कुछ जागृति लाता हुआ ..सार्थक प्रश्न पूछता हुआ आलेख ..!!
शुभकामनायें.
स्वय्म् इंसान ....
ईमानदार आदमी को बचाने की चिंता आज किसी भी राजनितिक पार्टी के एजेंडे में नहीं है . लिहाज़ा सरकार तो बचाएगी नहीं और लोग भी ईमानदारी का सबक़ भुला बैठे हैं तो वे भी नहीं बचायेंगे. ईमानदार अपनी जान खुद बचा सकता है तो बचा ले या फिर खुदा ही बचाए तो बचाए .
सत्य चिंतन,आभार.
ज्वलंत चिंता । आभार सहित...
मैं तो शुभकामनाएँ दे रहा हूँ कि यह प्रजाति पैदा हो जाए. परंतु दुनिया उसका करेगी क्या?
पूर्ण रूप से विलुप्त नहीं हो पायेगी .......
जब तक "मासूम" जैसे लोग इस धरती पर है तब तक इंसानियत जिन्दा रहेगी!
सहायता के लिए हम भी तो हैं आपके साथ!
सही कहा मासूम भाई,
ईमानदारी भी डायनासॉर की तरह है...इतने साल पहले विलुप्त हो गए लेकिन याद अब भी किए जाते हैं...
जय हिंद...
sab kuchh gayab ho jaye tabhi theek hai...
kuchh bachao to dikkat aur na bachao to dikkat...
sab bekaar hai...
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