मैंने एक पोस्ट डाली थी वैलेंटाइन डे और प्यार के नाम पे अनैतिक सम्बन्ध, जिसमें मैंने दो सवाल उठाए थे. १.वैलेंटाइन डे को मनाना और दूसरा शादी की सही उम्र.आज वैलेंटाइन डे के अवसर पे मैं उन ब्लोगेर्स की टिप्पणिओं को एक साथ पेश कर रहा हूँ .
इन टिप्पणिओं को पढने के बाद भारतीय समाज मैं वैलेंटाइन डे की क्या जगह है यह बात साफ समझमें आ जाती है. मूल लेख और पूरी टिप्पणिओं को पढने के लिए यहाँ जाएं..
- यह सांस्कृतिक संक्रमण क़ा समय है यह सांस्कृतिक संक्रमण क़ा समय है जिसमे सही गलत एक दूसरे से गुत्थमगुत्था हो गए है...DR. PAWAN K MISHRA
- सच तो यह है कि लोग प्रेम को समझ ही कहाँ सके । अगाध आत्मीयता प्रेम है , न कि वासना .डॉ. नागेश पांडेय "संजय
- सच में अब भारतीय समाज को ठहर कर सोचने की जरूरत है.अजय कुमार झा
- हमारे द्वारा किया अपने बच्चों का मार्गदर्शन ही समाज और फिर देश को एक संस्कारी युवावर्ग दे सकता है ...Minakshi पन्त
- पश्चिमी सभ्यता को अपनाकर अपनी संस्कृति को भूले जा रहे हैं । हर कार्य की एक उपयुक्त आयु होती है । सेक्स भी उनमे से एक है ।..डॉ टी एस दराल
- वैलेंटाइन , लिविंग रिलेशनशिप और मस्तिष्क के स्वस्थ विकास के पूर्व शारीरिक संबंध ... पाश्चात्य सभ्यता की नक़ल नहीं तो और क्या है ! ....रश्मि प्रभा...
- .इसमें गलती हमारे युवा वर्ग की कम हमारी ज्यादा है क्योंकि हमने उन्हें संस्कार ही नहीं दिए। ...वीना
- वैलेंटाइन डे के पीछे जितना हम लोग पागल हुये हे, उतना तो यह पश्चिम वाले भी नही पागल हुये हे,...राज भाटिय़ा
- जितना सहज प्रेम है उतना ही सहज है प्रेम में सेक्स। ....कुमार राधारमण
- मेरी समझ से जब तक आज के युवाओं को मनोवैज्ञानिक स्तर पर नहीं ट्रीट किया जाता, इस वातावरण से मुक्ति पाना असम्भव है।..ज़ाकिर अली ‘रजनीश’
- हम वैलंटाइन दे क्यों दोष दें?यह तो सिर्फ एक दिन मनाया जाता है लेकिन क्या इसके बिना हमारे यहाँ इस तरह के काम नहीं होते हैं..रेखा श्रीवास्तव
- अपने से छोटों को यौन शिक्षा दीजिये, जिससे उन्हें पता हो की उन्हें सम्बन्ध किस उम्र में बनाने हैं, क्योंकि कई बार तो जिज्ञासा के कारण लोग ये कदम उठा बैठते हैं... जिन घरों में ये शिक्षा मिली है, कहीं लड़कियों को माता से, लड़कों को पिता से या फ़िर बड़े भई-बहन से.... वहां के बच्चे नहीं बिगड़ते..POOJA...
- ज़माना बहुत बदल गया है दोस्तो(बूढ़ों का पुराना सदा बहार डायलॉग है यह). जब से दुनिया बनी है युवा यही करते आए हैं और करते रहेंगे....जो रोक सके रोक ले..भूषण
- ज़माना तहक़ीक़ का बेशक है लेकिन ऐसे में लोग पश्चिम की दूषित बाज़ार वाद से ग्रसित घिनौनी संस्कृति (?) को अपनाने में हिचक नहीं महसूस करते है..सलीम ख़ान
मैं अपने सभी ब्लोगर साथियों का शुक्रिया अदा करता हूँ जिन्होंने अपने विचार इमानदारी से प्रकट किए.
17 comments:
सराहनीय और स्वागत योग्य प्रस्तुति. आभार . कृपया यहाँ भी नज़र-ए-इनायत हो--
'हर दिवस हो प्रेम-दिवस'
swaraj-karun.blogspot.com
@ सभी की बातों से सहमत हूँ
सराहनीय प्रस्तुति.....मासूम जी आभार आपका इस प्रस्तुति के लिए
यह सब फ़ालतू के दिवस और कुछ नहीं बल्कि पश्चिम देशों के अपने उत्पादों की मार्केटिंग का हिस्सा है... अपने उत्पादों की बिक्री बढाने के लिए यह लोग हमारी संस्कृति को भ्रष्ट कर देना चाहते हैं.
बहुत ही अच्छी प्रस्तुती हैं आपका विषय विचार योग्य व सराहनीय है।
...सराहनीय प्रयास।
सभी ने अच्छा सार्थक सन्देश दिया है। बधाई।
सही लिखा है सभी ने, पर ये सिर्फ आज की बात नहीं है ये शायद तब से चलता आ रहा है जब से ये दुनिया बनी है,
और सिर्फ कुछ युवाओं की वजह से सभी पर दोष लगाना गलत है, सभी युवा वेलेंटाइन नहीं मनाते हैं ये बात भी ध्यान में रखनी चाहिए
विचार योग्य व सराहनीय प्रस्तुति. आभार...
SAHI VICHAR VYAKT KIYE AAP NE
वेलंटाईन डे के औचित्य पर रुककर पुनर्विचार करने के प्रस्ताव सराहनीय हैं । आभार सहित...
वैलेंटाइन डे को क्यों सिर्फ युवाओं से जोड़ कर देख रहे हैं? हाँ यह अवश्य है कि युवा अधिक उत्साहित होते हैं और पश्चिम के नक़ल में पार्टी और धूम धाम मचाते हैं लेकिन आज सुबह जब मेरी बेटी ने गुड मोर्निंग के साथ हैपी वैलेंटाइन डे कहा तो लगा कि कहाँ युवा भी इसको सीमाओं में बाँध कर चल रहा है. ये तो प्यार माँ, पापा, बहन और भाई सबके लिए होता है. यह हमारे ऊपर है कि हम उसको किस रूप में देखते हैं? कहीं भी ये नहीं कहा गया है कि इस दिन का मतलब युवाओं के द्वारा सारी हदें पार करके मनाना है.
अच्छा लगा सबके विचार जानना ।
मुझे लगता है की ये व्यवसायीकरण के बाद बहुत बढ़ा है....मंहगे कार्ड गिफ्ट और ना जाने क्या क्या....बात रही प्रेम की तो वो एक दिन की मोहताज़ तो नहीं.
मैंने भी यहाँ उतना पागलपन नहीं देखा जितना दिल्ली में रहते हुए देखा था...
हम तो पूरा फागुन प्रेम को समर्पित करते हैं....
और बात रही शारीरिक सम्बन्ध की...तो अपने साथी के प्रति वफादारी जरूरी है...चाहे वो विवाह-पूर्व ही क्यों ना हों...
सहमत हे जी आप से
NICE DISCUSSION
AGRI WITH YOU
Aisa nahi hai ki pehle ke zamane me yuvaon ke yaun sambandh nahi hua karte the... jo aaj khul ke ho raha hai. wah pehle ke zamane me chhup kar hua karta tha.. aur baat sirf valentine day par aakar he kyu atak jati ise aap apne pariwar ke sath bhi mana sakte h ya apne mahila/purush sathi ke sath bhi tareeka aap nishchit karte h ki kaise mana rahe h..
सराहनीय और स्वागत योग्य प्रस्तुति. आभार .
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