ओ इन्सान को बाँटनेवालो, क़ुदरत को तो बाँट के देख़ो।
ओ भगवान को बाँटनेवालो, क़ुदरत को तो बाँट के देख़ो।
कोइ कहे रंग लाल है मेरा, कोइ कहे हरियाला मेरा।
रंग से ज़ुदा हुए तुम कैसे ओ रंगों को बाँटनेवालो? ओ इन्सान को..
अमन के पैग़ाम पे अभी तक अमन के पैग़ाम" पे सितारों की तरह चमकें" श्रेणी मैं ४६ से अधिक ब्लोगेर्स के लेख और कविताएँ पेश की जा चुकी हैं. अमन के पैग़ाम के लेख को अर्चना जी ने अपनी आवाज़ दी और कुछ लेखों को अमर बना दिया. यह ब्लॉगजगत मैं एक नया तजुर्बा है और पहली बार इस काम को अमन के पैग़ाम ब्लॉग ने अंजाम दिया.
लेखों को अर्चना जी की आवाज़ के साथ मैंने विडियो की शक्ल देने की कोशिश की है जो आप के सामने पेश होती रही है. रज़िया राज़ जी का यह लेख और कविता इस श्रेणी की पहली पेशकश रही है जिसको ३१ टिप्पणिया मिली.
कल से अमन के पैग़ाम पे पेश किये गए लेख और कविताओं का विश्लेषण उनको मिली टिप्पणी के साथ पेश किया जाएगा..
आज पेश है रज़िया राज़ जी के लेख का विडियो
5 comments:
यह एक अच्छा और नया प्रयोग है जो रचनाओँ के द्वारा भेजे गए पैग़ाम को एक नया आयाम देता है. रज़िया जी की रचना छोटी ही सही परंतु हृदय पर प्रभाव करती है. शुभकामनाएँ.
bhut bhtrin nya andaaz mubark ho . akhtar khan akela kota rajsthan
रज़िया राज की की रचना बहुत अच्छी लगी। धन्यवाद।
Shandar!
Razia ji ki khobsurat kavita archanaa ji ki sundar aawaz me..badhaai ho
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