श्रीमती टिप्पणी से इश्क ब्लोगर के लिए कोई नया नहीं है और इसके इश्क मैं बड़े बड़े बेकार बर्बाद हुए. श्रीमती टिप्पणी जी के ऊपर बड़े लेख लिखे जा चुके हैं और ब्लॉग जगत इसकी चाहत मैं न जाने क्या क्या क्या क्या करता रहता है. कुछ ब्लोगर तो साफ़ साफ़ कहते हुए मिले की जब वो खुद ५० लोगों के ब्लॉग पे जा के टिप्पणी कर आते हैं तब कहीं जा के ४० टिप्पणी का इंतज़ाम खुद की पोस्ट के लिए हो पाता है.
यह भी सत्य है की एक से एक बेहतरीन लेख इस ब्लॉगजगत मैं केवल २-४ टिप्पणी ही पाते हैं और कुछ जगहों पे एक फूहड़ पोस्ट SMS JOKE की १२५ टिप्पणी पा जाया करती है.मैंने सुना था की पैसा पैसे को खींचता है और सच भी यही है ठीक उसी तरह से यह भी पाया की टिप्पणी टिप्पणी को खींचती है. क्यों की कुछ ऐसे भी ब्लोगर मैं जो दूसरों की नजर मैं आने के लिए वहां टिप्पणी कर आते हैं जहाँ अधिक लोग टिप्पणी कर रहे हैं.
इस असंतुलन का कारण मुझे यह दिखा की एक ब्लॉगजगत मैं वो लोग हैं जो सच मैं लिखते बहुत अच्छा हैं लेकिन उनके पास या तो इतना समय नहीं या उनकी पहुँच नहीं उतने ब्लोगर तक की वो वहाँ जा के टिप्पणी करें. ऐसे मैं उनके ब्लॉग पे भी लोग टिप्पणी नहीं करते.दुसरे वोह लोग हैं जिनके पास समय भी है, और कम से कम १५-२० ऐसे ब्लोगर को वो पहचान गए हैं, जो रोजाना ब्लॉगजगत मैं घुमते हैं. इनके लिए कुछ भी लिखके ५० टिप्पणी का इंतज़ाम करना बड़ा आसान हुआ करता है.
यहाँ यह अवश्य कह दूं कि समूह बना के टिप्पणी करना एक अच्छा काम है, रिश्ते अच्छे बनते हैं लेकिन इन रिश्तों का इस्तेमाल दुसरे ब्लोगर के खिलाफ करना निंदनीय है.
यह असंतुलन शायद ब्लॉगजगत की तरक्की के लिए सही नहीं है.ऐसे बहुत से कारण है जिनके बारे मैं यदि लिखा जाए तो ब्लोगर पुराण लिखा जा सकता है. लेकिन क्या अधिक टिप्पणी पाना एक अच्छे लेख , अच्छी कविता या अच्छे ब्लोगर की पहचान है? शायद नहीं.कुछ लोग हिंदी मैं न लिख पाने के कारण भी टिप्पणी नहीं करते.
मैंने एक दो ब्लोगर को देखा अभी १०-१५ दिनों मैं "अमन का पैग़ाम" ब्लॉग की किसी पोस्ट की टिप्पणी संख्या को मुद्दा बनाया. वो कहां तक सही हैं या ग़लत हैं अपने अनुमान मैं , यह तो वक़्त ही बताएगा. लेकिन अधिक टिप्पणी पाने का शौक और श्रीमती टिप्पणी जी से उनका इश्क उनके वाद विवाद से अवश्य ज़ाहिर हो गया और उनका खुशामदी मिजाज़ भी सब की समझ मैं आ गया.
अक्सर मैं भी लोगों से कहता हूँ भाई आपने नयी पोस्ट पढी लेकिन इसका कारण यह नहीं होता की मुझे पाठकों की कमी है बल्कि यह हुआ करता है की जिन लोगों ने "अमन का पैग़ाम" पे लेख भेजा है, कविता कही है ,या समाज मैं अमन और शांति की लिए समय दिया है उनका उत्साह बढाओ. वरना जो इज्ज़त "अमन के पैग़ाम" को इसके पाठकों ने दी है वो बहुतों की नसीब मैं नहीं होती . आज "अमन के पैग़ाम" से पेश की गयी एक कविता या लेख ३०-३५ टिप्पणी के बावजूद २५० से ९०० लोगों द्वारा हर दिन पढी जाती हैं. इसी कारणवश मैं हर २४ घंटे मैं लेख बदल दिया करता हूँ.
यह बात शायद बहुत से ब्लोगर को सच न लगे या जो "अमन के पैग़ाम" के खिलाफ फ़ोन और मेल से दुसरे ब्लोगर को गुमराह कर रहे हैं उनके लिए एक नया हथियार बन जाए. इन बातों से बचने के लिए मैं आप को कल की अपने ब्लॉग की stat की तस्वीर पेश कर रहा हूँ.
और एक सवाल उन ब्लोगर महाशय से कर रहा हूँ जो न जाने किन किन तरीकों "अमन के पैग़ाम: के खिलाफ बे बुनियाद अफवाहें फैला के लोगों को टिप्पणी करने से रोक रहे हैं.क्या आप की सारी कोशिश "अमन के पैग़ाम" के पाठकों को कम कर सकी? याद रखें "अमन और शांति" के साथी बहुत हैं, कुछ आपकी खुशनूदी मैं टिप्पणी किये बिना जा तो सकते हैं लेकिन लेख पढ़ते अवश्य है.
मेरा निवेदन है सभी से की आप उनसभी ब्लोगर का उत्साह बढाएं जो " अपने लेख या कविता के द्वारा समाज मैं शांति की बात कर रहे हैं. "अमन का पैग़ाम" के इतने पाठक होने का श्रेय इसको लेख भेजने वालों को जाता है. आप लेख और कविताएँ भेजते रहे अधिक से अधिक लोगों तक आप की मेहनत को पहुचना मेरा काम.
मुझे यकीन है की एक दिन आएगा जब सभी ब्लोगर इस "अमन के पैग़ाम: की अहमियत को समझेंगे और इस काम मैं सहयोग देंगे.
19 comments:
टिप्पणीश्री है
श्रीमती नहीं
पहले इसे सुधारें
बल्कि
टिप्पणी सुश्री है
तुरंत सुधारें
श्रीमती है पोस्ट
तभी तो कम आते हैं
इस पर
टिप्पणी पर टिप्पणी
टिप्पणी दर टिप्पणी
आइना देख के तसल्ली हुई
उन ब्लॉगर क़ा नाम तो बता दिए होते तो वह बेनकाब हो जाते
यह आपने क्या दिखा दिया मासूम साहब !
यूरोप जाकर भी लोग ऐसी तकनीक न ला पाए जो आपने अपने देस में बैठे बैठे ही ईजाद कर ली ।
आज पता चला कि मेरे पाठक तीन गुना क्यों हो गए हैं ?
सिर्फ़ आपके ब्लाग पर टिप्पणी करने की वजह से ।
जहां 900 पाठक डेली आते हों ऐसा कोई दूसरा ब्लाग मिलना आसान नहीं है और होगा भी तो दूसरों को तो सितारों की मानिंद चमकाता न होगा ।
आप 'ब्यूरो चीफ' ही नहीं बल्कि 'ब्लाग संसार' के भी चीफ़ हैं ।
जो चीफ़ नहीं हैं बल्कि चीप हैं वे भी इस बात को समझेंगे , ऐसी आशा है ।
अमनकर्मियों का हौसला बढ़ाने वाली यह पोस्ट दमनकारियों के शमन के लिए पर्याप्त है ।
आप और आपके 'हीरे' जैसे सभी साथियों को मुबारकबाद !
देखें:
http://pyarimaan.blogspot.com
प्यारी माँ
पवन जी मैं इस बात की पूरी कोशिश करता हूँ की मेरे लेख मैं किसी को नाम ले कर उसकी कमियां न बताई जाएं. किसी की बेईज़ती करना मेरा मकसद नहीं हुआ करता. क्योंकि मैं नफरत इंसान मैं मोजूद बुराई से करता हूँ किसी इंसान से नहीं. मेरी इस पोस्ट से उनको वोह सरे लोग पहचान जाएंगे जिनको आली जनाब फ़ोन और मेल से गुमराह कर रहे हैं. शायद उनको उनकी ग़लती समझ मैं आ जाए?
अनवर भाई मुबारक हो मेरे ब्लॉग पे टिप्पणी से आप के पाठक बढ़ गए? बस हमारी इज्ज़त रखना और समाज मैं अमन और शांति के पैग़ाम देना.
.
कभी २५० पाठक भी आते हैं तो कभी ९०० भी मुझे यह बताने की कोई आवश्यकता नहीं थी लेकिन जब सुना की लोग फ़ोन कर के और मेल भेज के गुमराह कर रहे हैं तो उनको आइना दिखाना आवश्यक हो गया. आशा है अब उनको अपनी ग़लती का एहसास हो चुका होगा और यकीन भी कि अमन के पैग़ाम को अच्छी पोस्ट के साथ साथ अच्छे पाठक भी मिले हैं.
अविनाश वाचस्पति @ भाई आज कल श्री और श्रीमती का अंतर बहुत मुश्किल होता जा रहा है. अब ऐसी ग़लतियाँ तो अक्सर हो जाया करती हैं
मासूम भाई जो भी टिप्पणियों पर पोस्ट लिखते हैं उनमे ये शब्द जरूर हुया करते हैं----\दुसरे वोह लोग हैं जिनके पास समय भी है, और कम से कम १५-२० ऐसे ब्लोगर को वो पहचान गए हैं, जो रोजाना ब्लॉगजगत मैं घुमते हैं. इनके लिए कुछ भी लिखके ५० टिप्पणी का इंतज़ाम करना बड़ा आसान हुआ करता है.
अब आप ये बतायें कि अगर हमे 50 टिप्पणी मिलती हैं तो इसमे हमारा क्या कसूर है? क्या जिन लोगों को टिप्पणी नही मिलती या कम मिलती हैं वो ये चाहते हैं कि हम कोई भी ब्लाग न पढें? हमारे पास समय है और पढने का शौक भी तो क्या उसे मार दें? हम किसी को कमेन्ट के लिये मेल नही करते जब्कि मेरे पास रो सैकडों पोस्ट की मेल आती है। जब आप लोग खुद किसी को पढना पसंद नही करते तो कोई आपको पढना कैसे पसंद करेगा? ऐसा लिखने वाले ये बात भूल जाते हैं। समय सब के पास होता है लेकिन खुद को सर्वश्रेष्ठ समझने व्क़ाले ही अक्सर नये लोगों का उत्साह वर्द्धन नही करना चाहते वर्ना मै ये बात नही मान सकती कि उन्हें टिप्पणियों का मोह नही होता। अगर नही होता तो टिइपणियों पर इतनी बडी बडी पोस्ट न लिखते। मै लगभग हर उस ब्लाग पर जाती हूँ जहाँ कविता कहानी गज़ल या रोचक विषय पर आलेख हों संस्मरण हो। राजनिती या धर्म पर बडे बडे आलेख मे मुझे रुची नही होती। लेकिन जब भी टिप्पणियों पर कोई पोस्ट पढती हूँ तो मन मे कहीं दुख और क्षोभ होता है जब लोग टिप्पणी पाने की कला का बखान करते हैं जब्कि खुद वो टिप्पणियों के ही भूखे होते हैं। जब आपको अच्छी टिप्पणियाँ मिल रही हैं और आप उनका बखान भी कर रहे हैं तो फिर दूसरों की भावनाओं को ठेस क्यों पहुँचा रहे हैं उपरोक्त शब्द कह कर? ये कैसा पैगाम दे रहे हैं आप । अब मुझे बतायें क्या किसी ब्लाग को भी न पढूँ सिवा आपके ब्लाग के? रोज़ रोज़ ऐसी बातें पढ कर पोस्ट लिखने वालों पर गुस्सा आता है और वो गुस्सा ही आप पर निकला क्योंकि जानती हूँ आप अमन के वाहक हैं गुस्सा नही करेंगे। आभार।
बढ़िया प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.
ढेर सारी शुभकामनायें.
संजय कुमार
उन ब्लॉगर क़ा नाम तो बता दिए होते तो वह बेनकाब हो जाते
pawan ji ne sahi kaha hai
Nice post.
ग़ज़ल
दिल लुटने का सबब
हम को किसके ग़म ने मारा ये कहानी फिर सही
किसने तोड़ा दिल हमारा ये कहानी फिर सही
दिल के लुटने का सबब पूछो न सबके सामने
नाम आएगा तुम्हारा ये कहानी फिर सही
नफ़रतों के तीर खाकर दोस्तों के शहर में
हमने किस किस को पुकारा ये कहानी फिर सही
क्या बनाएं प्यार की बाज़ी वफ़ा की राह में
कौन जीता कौन हारा ये कहानी फिर सही
-Masroor Anwar
'हिंदुस्तान , पृष्ठ 9 , 7-1-2011'
Nice post.
ग़ज़ल
दिल लुटने का सबब
हम को किसके ग़म ने मारा ये कहानी फिर सही
किसने तोड़ा दिल हमारा ये कहानी फिर सही
दिल के लुटने का सबब पूछो न सबके सामने
नाम आएगा तुम्हारा ये कहानी फिर सही
नफ़रतों के तीर खाकर दोस्तों के शहर में
हमने किस किस को पुकारा ये कहानी फिर सही
क्या बताएं प्यार की बाज़ी वफ़ा की राह में
कौन जीता कौन हारा ये कहानी फिर सही
-Masroor Anwar
'हिंदुस्तान , पृष्ठ 9 , 7-1-2011'
@ WITH CORRECTION
निर्मला जी आपको यहाँ देख के अच्छा लगा और आप उनमें से हैं जिनका सहयोग अमन के पैग़ाम के लिए हमेशा याद किया जाएगा. निर्मला जी
इस पोस्ट मैं आप जैसे किसी ब्लोगर का ज़िक्र नहीं है. इसी आपने अपने पे कैसे ले लिया, मैं समझ नहीं सका ?
.
मैंने अपनी पोस्ट मैं जो समूह नाम लिया है उसमें किसी समूह की कमी या बुराई नहीं की गयी है बल्कि उस इंसान के बारे मैं ज़िक्र है जो ऐसे समूह को फ़ोन कर के गुमराह कर रहा है, अमन के पैग़ाम के बारे मैं विश्लेषण कर के लोगों को भड़का रहा है , और यह विश्लेषण केवल लोगों को गुमराह करने के लिए हो रहा है. आपको भी यदि कोई फ़ोन आया हो तो आप भी उन जनाब को पहचान लें .
.
यह हर एक ब्लोगर का अधिकार है की वो जो चाहे पढ़े और जहाँ चाहे टिप्पणी करे. १५-२० ही नहीं बल्कि इस से भी बड़ा समूह बना की एक दूसरे के ब्लॉग पे टिप्पणी करना कोई बुरी बात नहीं बल्कि एक अच्छी बात है. लेकिन ....
.
निर्मला जी समूह बना के एक दूसरे के ब्लॉग पे टिप्पणी करना एक अच्छी बात है लेकिन गुटबाजी करना दूसरों के ब्लॉग के खिलाफ निंदनीय है और मेरी पोस्ट मैं यही बात कही गयी है.
.
दूसरी बात मेरी पोस्ट उठाई गयी है की क्या कारण है की ऐसे बहुत से बेहतरीन ब्लॉग हैं जहाँ अच्छे पोस्ट के बावजूद २-४ ही टिप्पणी मिला करती है. उनको भी बढ़ावा देना चाहिए.
.
और अंत मैं यह बता दें की टिप्पणी पाना सभी को अच्छा लगता है यह ऐसा सत्य है जिस से कोई इनकार नहीं कर सकता लेकिन अहम् हुआ करता है की आप के ब्लॉग की कितने पढ़ते हैं.
.
आशा है आप बुरा नहीं मानेंगी और यकीन जानिए की बेज़बान पे आप नहीं ईन तो कोई मेल नहीं करूँगा लेकिन "अमन का पैग़ाम" पे दूसरे ब्लोगेर के पेश किये लेख़ पे आप को खबर अवश्य देता रहूँगा. क्यों की उनके उत्साह को बढ़ाना शायद हम सब का फ़र्ज़ है.
BAHUT KHUB, EE SASURI TPIDDI HAI HI AISI. IDHAR BHI RAJNITI CHAL RAHI HAI
तारकेश्वर जी ईईईई राजनीती ही है भैया अमन के पैग़ाम" के नाम खराब करने के लिए. पूरे एक महीने झेलने के बाद लिखना पड़ा. सफेदपोशों से होशियार रहना आवश्यक है और इस बारे मैं अपनी बात रखना भी आवश्यक था. सब जान लें "अमन के पैग़ाम" को नुकसान पहुँचाने कि कोशिश सफेदपोश कर रहे हैं. यह औत बात है कि "अमन और शांति के पैग़ाम' को नुकसान होने वाला नहीं क्योंकि अक्ल सबके पास है.
मासूम साहब अक्सर नहीं हो पाता कि हर जगह टिप्पणई कर पाएं हम लोग। पर रोज तीन चार से ज्यादा ब्लॉग नहीं पढ़ पाता हूं। पर इतना तो तय है कि पेज की संख्या पर टंकित हो जाता है कि कितने कब आए। कई बार कविता अच्छी लगती है पर सिर्फ बेहतर या अच्छी कविता लिखने भर का मन नहीं करता। इंतजार करते हैं कि कुछ लिखा ऐसा हो जिससे बात को आगे बढ़ाया जाए कुछ सकारात्मक हो सके। पर हर बार नहीं हो पाता। कुछेक ब्लॉग अच्छी शायरी और कविता करते रहते हैं। ऐसे अमूनन ब्लॉग पर सप्ताह दस दिन में जाकर मैं एकसाथ सभी कविताएं या लेख पढ़कर टिप्पणी करता हूं। पर टिप्पणी का मर्तबान कई बार खाली भी रह जाए तो फर्क नहीं पढ़ता।
बोल्बिन्दास@ आप यदि ३-४ पोस्ट पढ़ पते हैं तो आप इमानदारी से पढ़ते हैं और इसे अधिक पढना संभव भी नहीं अधिकतर लोगों के लिए. आप की एक बात पसंद आयी.
.
"इंतजार करते हैं कि कुछ लिखा ऐसा हो जिससे बात को आगे बढ़ाया जाए कुछ सकारात्मक हो सके। "
.
यह इंतज़ार अक्सर ख़त्म नहीं होता यही अफ़सोस की बात है हम सब के इए. .
टिप्पणी पर टिप्पणी करना ठीक नहीं. टिप्पणी के तौर-तरीकों पर तौर-तरीके अपनाना भी ठीक नहीं. हर ब्लॉगर मनमर्ज़ी करता है. हर ब्लॉग मनमर्ज़ी का बना है. दूसरे ब्लॉग पर मनमर्ज़ी से जाया जाता है. मनमर्ज़ी की टिप्पणियाँ रख लें शेष निकाल दें. लॉबिंग मनमर्ज़ी से ही होगी. सब को यह अधिकार है. सीमाएँ खींचने की आदत यहाँ भी है. अमन का पैग़ाम फैलाते रहें. यही अच्छा कार्य है जिसकी सीमा नहीं है.
सामाजिक सरोकारों को लेकर श्रेष्ठ लिखिए बस, टिप्पणियों से किसी के लेखन का आकलन नहीं किया जा सकता है। यहाँ कठिनाई यह है कि लोग पढ़ने में कम रूचि लेते हैं।
अनवर जमाल साहब "अमन के पैग़ाम' को कोई ना नुकसान पहुंचा सकता है और ना ही मेरी छवि ख़राब कर सकता है, जब तक मेरा ब्लॉग इमानदार है , और यह हमेशा रहेगा.
.
यह गुमराह भी दुश्मनों को कर सकता है और दूर भी उन्ही को कर सकता है. जो इंसान का दिल रखते हैं उनको सही या ग़लत समझना भी आता है.
अमन का पैग़ाम hijack नहीं कर सकता कोई.....
Post a Comment