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    Friday, April 1, 2011

    सौ काम खुशामद से निकलते हैं जहाँ में:अल्लामा इकबाल

    allaamaa_thumb आज के युग मैं चापलूसी अथवा खुशामद की प्रवृत्ति का बोलबाला है. राजनीती से ले के ब्लॉगजगत तक इसको महसूस किया जा सकता है. इन चापलूसों से बचना अक्सर मुश्किल हो जाया करता है. 

    होशियार इंसान हमेशा जब किसी से तारीफ सुनता है तो एक बार यह अवश्य सोंचता है. क्या मैं सच मैं ऐसा हूँ? 

    जो नहीं सोंचता और झूटी तारीफ पे खुश हो जाता है, इस्तेमाल हो जाता है. इसी बात पे पेश है  अल्लामा इकबाल कि यह कविता.

     

    इक दिन किसी मक्खी से यह कहने लगा मकड़ा
    इस राह से होता है गुजर रोज तुम्हारा
    लेकिन मेरी कुटिया की न जगी कभी किस्मत
    भूले से कभी तुमने यहां पाँव न रखा

     


    गैरों से न मिली तो कोई बात नहीं है
    अपनों से मगर चाहिए यूं खिंच  के न रहना
    आओ जो मेरे घर में , तो इज्जत है यह मेरी
    वह सामने सीढ़ी है , जो मंजूर हो आना
    मक्खी ने सुनी बात मकड़े की तो बोली


    हज़रत किसी नादां को दीजिएगा ये धोखा
    इस जाल में मक्खी कभी आने की नहीं है
    जो आपकी सीढ़ी पे चढ़ा , फिर नहीं उतरा


    मकड़े ने कहा वाह ! फ़रेबी मुझे समझे
    तुम-सा कोई नादान ज़माने में न होगा
    मंजूर तुम्हारी मुझे खातिर थी वरना
    कुछ फायदा अपना तो मेरा इसमें नहीं था


    उड़ती हुई आई हो खुदा जाने कहाँ से
    ठहरो जो मेरे घर में तो है इसमें बुरा क्या ?
    इस घर में कई तुमको दिखाने की हैं चीजें,
    बाहर से नजर आती है छोटी-सी यह कुटिया


    लटके हुए दरवाजों पे बारीक हैं परदे
    दीवारों को आईनों से है मैंने सजाया
    मेहमानों के आराम को हाज़िर हैं बिछौने
    हर शख़्स को सामाँ यह मयस्सर नहीं होता


    मक्खी ने कहा , खैर यह सब ठीक है लेकिन
    मैं आपके घर आऊँ , यह उम्मीद न रखना
    इन नर्म बिछौनों से ख़ुदा मुझको बचाये
    सो जाए कोई इनपे तो फिर उठ नहीं सकता


    मकड़े ने कहा दिल में , सुनी बात जो उसकी
    फाँसूँ इसे किस तरह , यह कमबख़्त है दाना
    सौ काम खुशामद से निकलते हैं जहाँ में
    देखो जिसे दुनिया में , खुशामद का है बन्दा


    यह सोच के मक्खी से कहा उसने बड़ी बी !
    अल्लाह ने बख़्शा है बड़ा आपको रुतबा
    होती है उसे आपकी सूरत से मुहब्बत
    हो जिसने कभी एक नज़र आपको देखा


    आँखें हैं कि हीरे की चमकती हुई कनियाँ
    सर आपका अल्लाह ने कलग़ी से सजाया
    ये हुस्न,ये पोशाक,ये खूबी , ये सफ़ाई
    फिर इस पे कयामत है यह उड़ते हुए गाना


    मक्खी ने सुनी जब ये खुशामद , तो पसीजी
    बोली कि नहीं आपसे मुझको कोई खटका
    इनकार की आदत को समझती हूँ बुरा मैं
    सच यह है कि दिल तोड़ना अच्छा नहीं होता


    यह बात कही और उड़ी अपनी जगह से
    पास आई तो मकड़े ने उछलकर उसे पकड़ा
    भूका था कई रोज़ से , अब हाथ जो आई
    आराम से घर बैठ के , मक्खी को उड़ाया


    - अल्लामा इक़बाल
    [ वरना = नहीं तो , सामाँ = सामान ,  दाना = समझदार , कनियाँ = टुकड़े]
    मुसलमानों के खलीफा हज़रत अली (अ.स) ने भी फ़रमाया : हक से बढकर तारीफ करना चापलूसी है; और हक से कम तारीफ करना या तो बोलने की कमजोरी है या फिर हसद (जलन ). हवाला : ताजल्लियत ए हिकमत

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    11 comments:

    आपका अख्तर खान अकेला said... April 1, 2011 at 9:52 PM

    maasum bhaai aek hdis men apane zindgi kaa sch smjhaa diyaa shukriyaa . akhtar khan akela kota rajsthan

    Kunwar Kusumesh said... April 1, 2011 at 11:23 PM

    अच्छी सीख देती हुई बेहतरीन नज़्म. दिक्कत ये है की आख़िर आदमी आजकल किस पर भरोसा करे ये समझना वाक़ई बड़ा मुश्किल हो गया है.और किसी पे भरोसा न करे तो काम नहीं चलेगा.

    PAWAN VIJAY said... April 2, 2011 at 8:49 AM

    खुशामद करना अच्छी बात है
    मासूम भाई इतनी अच्छी नज्म लाने के लिए शुक्रिया और भी अच्छी नज्में आये इसके लिए आपकी खुशामद करता हूँ
    हा हा हा
    किसी को खुश करने से ज्यादा पुन्य कार्य दूसरा नही पर खुश करने के पीछे क्या मंशा है मुद्दा यह है स्वार्थ सिद्ध हेतु खुशामद चापलूसी कहलाती है जो किसका ने सीज़र के साथ किया था

    vandana gupta said... April 3, 2011 at 5:13 PM

    सच्चाई बयाँ करती एक बेहद उम्दा प्रस्तुति।

    Dr Kiran Mishra said... April 6, 2011 at 9:34 AM

    ati har chij ki buri hoti hai chahe wo kisi ki tariph hi kyon na ho

    हरीश सिंह said... April 17, 2011 at 1:15 PM

    बहुत अच्छी पोस्ट, शुभकामना, मैं सभी धर्मो को सम्मान देता हूँ, जिस तरह मुसलमान अपने धर्म के प्रति समर्पित है, उसी तरह हिन्दू भी समर्पित है. यदि समाज में प्रेम,आपसी सौहार्द और समरसता लानी है तो सभी के भावनाओ का सम्मान करना होगा.
    यहाँ भी आये. और अपने विचार अवश्य व्यक्त करें ताकि धार्मिक विवादों पर अंकुश लगाया जा सके.,
    मुस्लिम ब्लोगर यह बताएं क्या यह पोस्ट हिन्दुओ के भावनाओ पर कुठाराघात नहीं करती.

    alka mishra said... April 26, 2011 at 8:41 PM

    अल्लामा इकबाल की तो मैं बहुत प्रशंसक हूँ.

    हल्ला बोल said... April 28, 2011 at 2:11 PM

    धार्मिक मुद्दों पर परिचर्चा करने से आप घबराते क्यों है, आप अच्छी तरह जानते हैं बिना बात किये विवाद ख़त्म नहीं होते. धार्मिक चर्चाओ का पहला मंच ,
    यदि आप भारत माँ के सच्चे सपूत है. धर्म का पालन करने वाले हैं तो
    आईये " हल्ला बोल" के समर्थक बनकर धर्म और देश की आवाज़ बुलंद कीजिये...
    इस ब्लॉग के लेखक बनने के लिए. हमें इ-मेल करें.
    हमारा पता है.... hindukiawaz@gmail.com
    समय मिले तो इस पोस्ट को देखकर अपने विचार अवश्य दे
    देशभक्त ब्लोगरो का पहला साझा मंच
    हल्ला बोल

    डॉ० डंडा लखनवी said... May 9, 2011 at 11:46 PM

    शिक्षाप्रद नज्म की प्रस्तुति के लिए साधुवाद!
    =====================
    सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी

    Satish Saxena said... May 15, 2011 at 12:04 PM

    आज हर जगह यह मकड़े मौजूद हैं मासूम भाई ! किसी और को छोडिये परवरदिगार का भी खौफ नहीं हैं इन्हें ! पछतावे का तो सवाल ही नहीं ....
    शुभकामनायें आपको !!

    Item Reviewed: सौ काम खुशामद से निकलते हैं जहाँ में:अल्लामा इकबाल Rating: 5 Reviewed By: S.M.Masoom
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