जब जब प्रेमी जोड़े सामाजिक बंधनों को तोड़ के अपनी प्यार की दुनिया बसाना चाहते हैं तो यह समाज उसे कुबूल नहीं करता | सवाल यह उठता है कि क्या यह समाज प्यार का दुश्मन है ?
ऐसा नहीं है कि यह समाज प्यार का दुश्मन है बल्कि इस समाज ने ऐसे बहुत से कानून खुद से ही बना लिए हैं जिनकी कोई आवश्यकता ही नहीं थी | जैसे धर्म और जाति के बंधन इत्यादि |
नौजवानों पे समाज के अधिक बंधन उनके अपने जीवन साथी का चुनाव करने में एक बड़ी बाधा है | सही तरीका तो यह है कि अपने बच्चों को अच्छी परवरिश दो ,उन्हें समय रहते अच्छे बुरे कि तमीज सिखाओ और फिर देखो सही समय आने पे कैसे वो अपना जीवन साथी चुनते हैं | यदि आपको लगे कि उनका चुनाव उनके भविष्य के लिए गलत है तो उन्हें प्यार से समझाओ न कि उनका सामाजिक बहिष्कार करो |
आज बंद कमरों में वो सब कुछ आसानी से हों जाता है जो शादी के बाद होना चाहिए था | न किसी को पता लगता है और न ही कोई पूछता है कि तुम्हारा साथी किस जाति का है किस धर्म का है ? दोस्ती के नाम पे सब चलता है | लेकिन जैसे ही ऐसे किसी जोड़े ने सही फैसला लेटे हुए शादी कि बात कि वैसे ही पचासों सवाल उठने लगते है कि कौन सी बिरादरी है, किस जाति का है? और इसी आधार पे सामाजिक बहिष्कार, सजा इत्यादि तय कर दी जाति है |
यह सत्य है कि शादी से पहले किसी भी जोड़े को यह अवश्य देख लेना चाहिए कि क्या उन दोनों कि सोंच, पसंद , ना पसंद मिलती जुलती है? यदि दोनों का धर्म अलग है तो यह अच्छा होता है कि दोनों विचार विमर्श कर के किसी एक धर्म को चुन लें | समाज को उन्हें समझाने का तो हक है लेकिन सजा या सामाजिक बहिष्कार का हक नहीं है |
युवाओं को अपनी मर्ज़ी से अपनी ज़रूरत के समय अपना जीवन साथी चुनने का पूरा अधिकार है और उन्हें यह आज़ादी मिलनी ही चाहिए |
11 comments:
दोनों विचार विमर्श कर के किसी एक धर्म को चुन लें |
why ?? both can live together after marriage and follow rituals of both the dharma
if their kids get married and 2 new dharmas get added then their family will be really INDIA
hindu muslim sikh issaaiii
प्यार धर्म, मजहब से ऊपर है. पूर्णतया रचना जी से सहमत
रचना जी से सहमत हूँ.
और देखने वाली बात यह भी हैं कि जब उस जोडे को एक दूसरे से कोई शिकायत या मतभेद नहीं हैं तो आप और हम कौन होते हैं उन पर अपनी मर्जी थोपने वाले? यदि दोनों में से कोई भी एक दूसरे को धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर नहीं कर रहा हैं तो इससे तो यही साबित होता हैं कि वह दोनों अपने धर्म के साथ ही अपने साथी के धर्म का भी सम्मान कर रहा हैं.हाल ही का मामला सैफ करीना का हैं दोनों की सोच काबिले तारीफ हैं.दूसरों को इनसे कुछ सीखना चाहिए.
PYAR TO PYAR HAI ...WO KYA JANE KABA KASHI...JAAT PAAT SE KYA LENA DENA...
KAB RAHA WO SAMAJ KA DASI...
PREM TO SAB KARTE HAI...PUCHH LO UNHE BHI JO PREMIYON SE NAFRAT KARTE HAIN.
PYAR TO PYAR HAI ...WO KYA JANE KABA KASHI...JAAT PAAT SE KYA LENA DENA...
KAB RAHA WO SAMAJ KA DASI...
PREM TO SAB KARTE HAI...PUCHH LO UNHE BHI JO PREMIYON SE NAFRAT KARTE HAIN.
@PUCHH LO UNHE BHI JO PREMIYON SE NAFRAT KARTE HAIN
वाह वाह अशरद अली जी!
ये बात मैंने भी कई बार कहनी चाही है.
रचना जी का जवाब यहाँ है | वैसे यह उनकी सोंच है और इसमें कोई बहस कि आवश्यकता भी नहीं है |
http://www.payameamn.com/2012/06/blog-post_30.html
रचना जी का जवाब यहाँ है | वैसे यह उनकी सोंच है और इसमें कोई बहस कि आवश्यकता भी नहीं है |
http://www.payameamn.com/2012/06/blog-post_30.html
waah apni dusri psot padhwaanae kaa sugam tarikaa haen
meare kis baat kaa jawab wahaan haen ???
hamesha bhrm uttpan naa hi kiyaa karae
आपका एक ही सवाल हुआ करता है |लेख पे कोई एतराज़ करो और उसी का जवाब मैंने अगली पोस्ट से दिया है क्योंकि टिपण्णी कि जगह मैं जवाब लेख से देता हूँ|
maene kab laekh par aetraaj kiyaa
maene mehaj aap kae laekh ko vistaar diyaa thaa
aap kament padhtey hi nahin haen shyaad aur baaki tippanikartaa usko padh kar sehmat huae
भगवान् का शुक्र की आप की टिप्पणी से कोई सहमत तो हुआ? :)
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